Drishyam, ek chudai ki kahani-45

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    औरत मर्दों से ऊँची है, सारे संसार की द्योति है। कमजोर नहीं चुदवाते हुए चूँकि वह निचे सोती है।
    माँ, बहन, बेटी, पत्नी बनकर बोजा सारा वह ढोती है, सारा संसार करे रोशन ऐसी वह प्रेम की ज्योति है।

    मैंने अर्जुन और रमेश से कहा, “देखो पुरुष अपने कुटुंब का धनोपार्जन कर के पालन पोषण करता है पर स्त्री हमेशा पुरुषों से कई गुना ऊँचे स्थान पर है। चूँकि औरत चुदवाते हुए, मर्द के निचे सोती है, इसका मतलब यह नहीं की वह मर्द से नीची है…

    आजकल स्त्री धनोपार्जन भी कर सकती है और साथ साथ में स्त्री पुरे जगत को प्रेम के धागे से बाँध कर रखती है। स्त्री अन्नपूर्णा है। वह जगत जननी है। इस लिए स्त्रियों का स्थान सबसे ऊपर है…

    चूँकि वह बिना कुछ मांगे हमारी सेवा शुश्रुषा करती रहती है इस लिए हम उसकी उपेक्षा करते रहते हैं, और कई बार उसे अपमानित भी करते हैं। पर बिना स्त्री के पुरुष रह नहीं सकता। वह हमारे जीवन में एक अनिवार्य हस्ती है। हमें चाहिए की हम उनका सम्मान करें उनको खुश रखें ताकि हमारा समाज, घर और हम खुद खुश रह सकें…

    हम जब किसी स्त्री से शादी करना चाहते हैं या उसे भोगना चाहते हैं तो उससे हमें प्यार की भीख मांगनी चाहिए। रमेश मुझे बड़ी ख़ुशी है की तुमने मेरे बोली हुई पंक्तियाँ दुहरा कर आरती से प्यार की भीख मांगी है। अब आरती को तुम्हारी प्रार्थना का उत्तर देना है। आरती क्या तुम रमेशजी की प्रार्थना से आश्वस्त हो की रमेशजी कोई फरेबी नहीं पर एक सच्चे प्रेमी हैं?”

    आरती ने सेल फ़ोन में पहले मेरी और देख कर और बाद में मुस्करा कर रमेशजी की और देख कर कहा, “जी अंकल मैं आश्वस्त हूँ की रमेशजी कोई फरेबी या धोखेबाज नहीं पर सच्चे प्रेमी हैं।”

    मैंने कहा, “फिर ठीक है तो आरती अब मैं जो बोलूंगा उसे तुम दोहराओगी।” फिर मैंने आरती को यह श्लोक बोलने को कहा। मैंने कहा:

    “बोलो,

    हे मेरे प्यार के भोक्ता मैं तुम पर मैं कुर्बान हूँ अब श्रृंगार करो जिससे मोहिनी बन जाऊं मैं।”
    धन सम्पदा सब कुछ अर्पण कर देना मुझे तुम्हारी ही रहूं हरदम कहीं भटक ना पाऊं मैं।

    आरती ने मुस्कराते हुए वह पंक्तियाँ दोहराईं।

    जैसे ही आरती ने मेरे श्लोक को दोहराया तब मैंने रमेश से कहा, “आरती ने तुम्हें पति के रूप में स्वीकारा तो है, पर एक बात समझो। स्त्री पुरुषों से अपेक्षा रखतीं हैं की वह उसे प्रचुर मात्रा में धन, संपत्ति और आभूषण दे, जिससे वह अपने रूप का प्रदर्शन कर पुरुष का मन मोह सके। विधि के अनुसार तुम्हें उसे भेंट देकर और प्राथना कर खूब प्रसन्न करना है। अब तुम आरती के श्रृंगार करने के लिए जो जो आभूषण और कपडे बगैरह लाये हो उसे एक के बाद एक अर्जुन को दिखाओ और अपने हाथों से आरती का श्रृंगार ऐसे करो की जिससे आरती का मन तुम मोह लो और आरती तुम पर न्योछावर हो जाए।”

    रमेश ने आरती के लिए सोलह श्रृंगार का पूरा इंतजाम किया हुआ था। वह सोलह श्रृंगार थे:

    1. कपाल पर लाल चटक बिंदी का टिका,
    2. माथे में माँग में भरने के लिए गाढ़ा सिंदूर,
    3. माँग में माँग टिक्का (माने आभूषण जो माँग के बिच में कपाल पर लटकाया जाता है),
    4. आँखों में काजल का अंजन,
    5. नाक में नथनी,
    6. गलेमें नेकलेस या हार,
    7. कानों में कर्ण फूल याने ईयर रिंग याने झुमका,
    8. हाथों में मेहंदी,
    9. हांथों में चूड़ा और चूड़ियां,
    10. बाँहों में बाजुबंद,
    11. हाथों में उँगलियों में आठ अंगूठियां (अंगूठों को छोड़ कर आठों उँगलियों में),
    12. केश पाश रचना माने बालों में फूलों का सजा हुआ गजरा,
    13. कमर बंद,
    14. पायल अथवा बिछुआ,
    15. पुरे बदन पर इत्र अथवा सुगंध,
    16. बदन पर शादी का जोड़ा (माने साडी, चुन्नी, मैचिंग घाघरा और अंतर वस्त्र।

    मैंने रमेश से कहा, “इन में से तुम्हें आरती को पंद्रह श्रृंगार करने हैं। जो नहीं करना है वह है माँग में सिंदूर भरना। माँग में सिंदूर की विधि बाद में होगी। अब सबसे पहले अर्जुन ने आरती को जो साड़ी पहनाई थी वह तुम्हें अपने हाथों से उतारनी है।”

    रमेश ने आगे बढ़ कर आरती की साड़ी के एक छोर को खींचा और आरती ने गोल गोल घूम कर वह साड़ी उतार दी। आरती की सख्त चोली में से उसके उन्नत उरोज आरती के ब्लाउज की मर्यादा ना मानते हुए ब्लाउज के बाहर फुले हुए फुग्गे मतलब बैलून के समान दिख रहे थे जिसके बिच में आरती की उत्तेजना से भरी हुई सख्त निप्पलेँ तीर की नोक सी बाहर नुकीली निकली हुई बड़ी कामुक लग रही थीं।

    आरती की चोली, उसकी चूँचियों को बस ढके हुए ही थी। आरती की पूरी कमर आरती की मदभरी चूँचियों से ले कर आरती की चूत से ऊपर के उभार तक बिलकुल नंगी थी।

    आरती की कमर का घुमाव और आरती की नाभि बहुत ही लुभावनी और उत्तेजक दिख रही थी। सेल फ़ोन में देखते हुए भी मेरा बुड्ढा लण्ड खड़ा हो गया था तो आरती के दो युवा पतियों का क्या हाल होगा वह पाठकों के लिए समझना मुश्किल न होगा।

    यहां यह लिखना सही होगा की यह सारी प्रक्रिया के दरम्यान रमेश का लण्ड रमेश की कण्ट्रोल में रहने की बात मानने के लिए बिलकुल तैयार नहीं था। वह तो पहले जैसे खड़ा ही खड़ा था। उसे सम्हालना रमेश के लिए नामुमकिन सा था। आरती और अर्जुन ने भी रमेश की धोती में बने हुए उस बड़े तम्बू को देखा। पर क्या करते? आरती ने रमेश से इशारों में ही संकेत दिया की रमेश उस तम्बू को ख्वामखा छिपाने की कोशिश ना करे।

    मैंने आरती को कहा, “आरती बेटी, अब तुम बैडरूम में जाकर दरवाजा बंद कर, यह घाघरा, चोली, ब्रा और पैंटी निकाल दो और रमेश के लाये हुए घाघरा, चोली, ब्रा और पैंटी पहन कर वापस यहां आ जाओ।”

    मेरे आदेश के अनुसार आरती बैडरूम में चली गयी और करीब पंद्रह मिनट से भी कम वक्त में कपडे बदल कर वापस आ गयी। रमेश ने आरती के बिलकुल सही नाप के अनुसार सारे कपडे बनवाये थे। मैंने रमेश से कहा, “अब तुम तुम्हारी होने वाली प्रियतमा आरती को अपनी लायी हुई साड़ी पहनाओ और फिर अपनी प्रियतमा का ऐसा श्रृंगार करो जिससे की वह मोहिनी सी सुन्दर बन जाए और तुम पर प्रसन्न हो जाए।”

    रमेश ने पसंद की हुई लाल चटक साडी आरती को पहनाई। अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ जब उसने देखा की रमेश को साड़ी पहनाने गजब की की दक्षता थी। साडी पहना कर रमेश ने आरती के कन्धों पर लाल रंग की चुन्नी पहनाई। इसके बाद माता जी का प्रसाद सा कुमकुम जो रमेश दुर्गा माँ के मंदिर से लाया था उससे आरती के कपाल पर टिका किया। आरती ने फिर अपने आप अपनी बिंदी कपाल पर लगाई।

    रमेश ने ऊपर दर्शाये गए सोलह में से पंद्रह आभूषण आरती को पहनाये। रमेश ने काफी खर्च कर हीरों से जड़ा हुआ कमर बंद, हाथोँ के लिएआठ सोने की अंगूठियां, कानों के झुमके, गले का सोने का हार, नाक की नथनी, हाथों का चूड़ा, बाजुबंद. पायल और शादी का जोड़ा खरीदा था। आरती ने अगले दिन ही हाथों में मेहंदी लगवाई थी।

    रमेश आरती का श्रृंगार कर एक तरफ खड़ा हो गया। अर्जुन इस तरह पंद्रह श्रृंगार से पूरी तरह सजी हुई आरती को दुल्हन के भेष में शादी के स्थान पर हाथ थाम कर ले आया। उस समय आरती का रूप कोई भी अद्भुत सुंदरी से भी उच्चतम था। इन आभूषणों से सजा कर रमेश ने आरती को एक योग्य स्थान पर (याने सोफा पर) बिठाया। उसके बाद सारे अभषणों से सजी हुई आरती के अर्जुन ने कुछ फोटो लिए।

    रमेश अपनी होने वाली बीबी को देख कर शायद उतना उन्मादित नहीं हुआ था जितना की अर्जुन। अर्जुन ने अपनी बीबी को दूसरी बार (या शायद पहली ही बार, क्यों की अर्जुन से शादी के वक्त आरती इस तरह इतनी सजी हुई नहीं थी) ऐसे आभूषणों में सोलह श्रृंगार किये सजे हुए देखा था।

    जब रमेश ने आरती को अच्छी तरह सजा लिया तो मैंने रमेश से कहा, “अब तुमने आरती को पंद्रह आभूषणों से श्रृंगार किया है। पर अभी दो आभूषण बाकी हैं। वह हैं माँग में सिन्दूर और गले में मंगलसूत्र। पर उसके लिए तुमको आरती को प्रसन्न करना पड़ेगा। अब तुम आरती को फिर से प्रार्थना करो जैसे मैं तुम्हें कहता हूँ।”

    ऐसा कह कर मैंने रमेश से कहा, “बोलो,

    हे मेरी आरती देवी तुम्हें मैंने सजा दिया, कृपा कर यह बतलायें क्या अब आप प्रसन्न हैं?”

    मेरे कहने पर रमेश ने वही श्लोक दोहराया। मैंने रमेश से पूछा, “क्या इसका मतलब जानते हो?” रमेशने कहा, “हाँ, इसका मतलब है की मैंने आरती से प्रार्थना कर यह कहा की अब मैंने आपको श्रृंगार कर दिए हैं, क्या अब आप मुझ पर प्रसन्न हैं?”

    मैंने आरती से पूछा, “बेटी, तुम्हारे प्रेम आकांक्षित रमेश तुमसे पूछता है क्या तुम रमेश के किये हुए श्रृंगार से प्रसन्न हो और क्या अब तुम उससे माँग में सिन्दूर भरवाने और गले में मंगल सूत्र पहनाने के लिए तैयार हो?”

    आरती ने मेरी और देख कर कहा, “जी अंकल, मैं तैयार हूँ।”

    मैंने कहा तो फिर बोलो,

    “हे मेरे प्यार के दाता, मैं तुम पर अब प्रसन्न हूँ, मंगल सूत्र पहना कर मेरी माँग भरो अभी।”

    जब आरती ने मुस्करा कर वह श्लोक बोला तब मैंने रमेश को आरती की माँग भरने का आदेश दिया। साथ ही साथ में रमेश अपनी पहली पत्नी के गले में डाला हुआ मंगल सूत्र ले आया था वो उसने आरती के गले में पहनाया। अर्जुन और मैंने तालियां बजा कर इस विधिका अभिवादन किया।

    इसके बाद मैंने अर्जुन से कहा की एक दिप जला कर लाओ। अर्जुन ने जब दिप जलाया तब मैंने रमेश और आरती को एक दूसरे के साथ खड़ा किया। रमेश का दुपट्टा और आरती की चुन्नी को गाँठ से बाँध कर मैंने उनको दिप के इर्दगिर्द चार फेरे लगवाए जिसमें दूल्हा आगे चलता है और तीन फेरे ऐसे लगवाए जिसमें दुल्हन आगे चलती है।

    ऐसे सात फेरे लगाने के बाद मैंने रमेश से कहा, “अब तुम गन्धर्व विधि से आरती के उपपति बने हो। उपपति इसलिए हो क्यूंकि आरती का वैदिक पति अर्जुन है। अब तुम्हारा गंधर्व विवाह आरती से संपन्न हो गया है। अब तुम्हें आरती से सम्भोग, मतलब आरती की चुदाई करने की इजाजत है। अब तुम उपपति के नाते आरती को होँठों पर चुम्बन कर सकते हो।”

    मेरी बात सुन कर अधीर रमेश ने आगे बढ़ कर फुर्ती से आरती को अपनी बांहों में जकड़ा और आरती का मुंह ऊपर कर अपने मुंह के साथ चिपका कर हमारे सामने ही आरती को गाढ़ चुम्बन में ले लिया। भौंचक्की सी आरती को हम सब के सामने ही रमेश जी की बाँहों में जाकर उनसे लिपटना पड़ा। आरती और रमेश एक दूसरे के होँठ और जीभ चुमने और चाटने में मस्त हो गए।

    रमेश की बाँहों में आते ही आरती ने रमेश के धोती में खड़े लण्ड को बखूबी महसूस किया। अपने प्रथम पति अर्जुन के देखते हुए आरती आगे बढ़ने से कुछ झिझक रही थी ऐसा अर्जुन को लगा। अर्जुन वाशरूम जाने का बहाना कर जैसे ही वहाँ से खिसका वैसे ही आरती ने अपना एक हाथ लंबा कर रमेश के लण्ड को धोती के ऊपर से ही अपनी हथेली में पकड़ा और उसे प्यार से हलके हलके सहलाने लगी।

    अर्जुन उस कमरे से बाहर निकल कर दरवाजे के पीछे छिपकर यह नजारा देखने लगा। उस के लिए यह समा कोई अद्भुत रोमांचकारी सीन से कम न था। मुझे महसूस हुआ की अर्जुन अपनी पत्नी को रमेश को चूमते हुए देखते हुए अपना लण्ड अपनी पतलून में हिला रहा था।

    कुछ देर बाद जब अर्जुन ने वापस कमरे में प्रवेश किया तब आरती खिसिआनि सी रमेशजी से अलग हो कर अपने कपडे सँवारने लगी।

    अब रमेश को अर्जुन दोनों को और शायद आरती को भी जल्दी थी की कब मेरी यह विधि खत्म हो और कब चुदाई शुरू हो। आरती को चुम्बन के बाद अलग कर रमेश ने मुझे सेल में झांकते हुए पूछा, “पंडितजी, पापाजी, अब तो सब कुछ हो गया ना?”

    मैंने जवाब दिया, “नहीं बेटा इतनी जल्दी नहीं। अब तक तो मैंने तुम्हारे और आरती के गन्धर्व विवाह की विधि निभायी। तुम दोनों का गन्धर्व विवाह अब हो गया। मेरा पहला कर्तव्य अब समाप्त हुआ। पर इस गन्धर्व विवाह के मेरे रचना की हुई रस्म के अनुसार अब मैं तुम्हारी और आरती की रति क्रीड़ा माने सुहाग रात की उत्तेजना प्रेरक विधि का विधान बताता हूँ। इस ख़ास गन्धर्व विवाह की विधि के अनुसार अभी भी तुम्हें आरती के साथ सम्भोग करने की इजाजत नहीं है। पर अब आगे की विधि संपन्न करने पर तुम आरती से सुहाग रात का सम्भोग कर सकते हो।”

    मेरी बात सुन कर अर्जुन, आरती और रमेश मेरी और भौंचक्के से देखने लगे। रमेश ने पूछा, “अंकल, अब क्या है? मैं आरती के साथ सुहाग रात क्यों नहीं मना सकता?”

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