प्रिय पाठक गण
मेरी इस कहानी को काफी रिस्पांस मिला जिसके लिए मैं पाठक गण का आभारी हूँ। आगे की कहानी कहानी नहीं एक कविता है। इसे वास्तविक कहानी मत समझना। अपना प्यार, सेवा, बलिदान की बदौलत स्त्रीवर्ग हम पुरुष वर्ग से कहीं ऊँचे स्थान पर है।
वह ना सिर्फ हमारी पूरक हैं बल्कि वह हमारी जान हैं। उनके बगैर हम जी नहीं सकते। मेरी आने वाली कहानी इसी बात को आगे बढ़ाती है। अगर उसे आप वास्तविक रूप में देखें तो उसमें आपको अतिश्योक्ति लगेगी। यह अतिश्योक्ति ही मेरा पुरे स्त्री वर्ग को प्रणाम के रूप में देखा जाए।
चुदवाना गैरों से है तो शादी कर चुदवाना तुम।
होते हैं शादी में जो सब विधि विधान करवाना तुम।
गर चुदवाउं किसी और से मैं बिलकुल ना कभी घबराना तुम,
तुम्हें छोड़ कहीं नहीं जाउंगी मुझे छोड़ कहीं मत जाना तुम।
हमारी चैट बाद दूसरे दिन आरती का मेसेज आया। आरती ने लिखा, “अंकल रमेशजी बहुत ज्यादा पागल हो रहे हैं। अब मैं उन्हें रोक नहीं सकती। मैंने उन्हें आने के लिये हाँ कह दिया है।” मैं समझ गया की आरती की अपनी चूत में भी तो रमेश से चुदवाने की जो ललक उठ रही है, वह उसे कैसे रोकेगी? पागल तो आरती भी हो रही थी। आग दोनों और से बराबर की लगी हुई थी।
मैंने लिखा, “ठीक है, आ जाने दो। रमेश जैसे ही आने वाला हो मुझे बता देना।”
मैं जानता था की उसके बाद आरती और अर्जुन बड़े ही व्यस्त हो गए होंगे। उनको बहुत सारी तैयारियां जो करनी थीं? पर अर्जुन मेरे मेसेज का इंतजार कर रहा था। जैसे ही हमने “हाय हेलो किया तो उसने पूछा, सर अब आपने बताया था ना, वह गन्धर्व विवाह के लिए क्या करना है?”
मैंने जवाब दिया, “मैंने इस गन्धर्व विवाह पर एक अलग ही विधिविधान की रुपरेखा तैयार की है।“
फिर मैंने आरती को जो शादी की विधि बतायी थी वही अर्जुन को भी बतायी। मैंने कहा, आरती तुम्हारे सामने रमेश से हरगिज़ नहीं चुदवायेगी। तुम्हें मेरे तैयार किये गए रीतिरिवाज से ही संतुष्ट होना पडेगा।”
गन्धर्व विवाह तो एक बहाना था। मुझे तो अर्जुन और आरती के जीवन में वैवाहिक और कामुक दृष्टिकोण से एक अतिउत्तेजक प्रसंग को पैदा करना था जो लम्हें अर्जुन, आरती और रमेश के जीवन में एक यादगार धरोहर के रूप में साबित हों।
अर्जुन ने कहा, “सर, विवाह के दरम्यान वीडियो कॉल द्वारा जो भी श्लोक बोलने हैं, मन्त्र पढने हैं आपने करना है। मैं तो सिर्फ आप के कहे अनुसार सारी व्यवस्था कर दूंगा। अंकल यह संस्कृत श्लोक बगैरह मेरी समझ से बाहर है। कुछ हिंदी में हो तो बेहतर है। बाकी आप जानो क्या करना है।”
मैंने लिखा, “अगर तुम सबको ठीक लगता है तो मुझे इस गन्धर्व विवाह में आज कल के मॉडर्न पंडित बनकर विवाह करवाने में कोई आपत्ति नहीं। आरती भी मुझसे यही कह रही थी की मैं ही इस गन्धर्व विवाह की विधि कराऊँ। तुम रमेश से बात कर लेना अगर उसे कोई आपत्ति नहीं होगी तो मैं तैयार हूँ। जहां तक श्लोक का सवाल है तो यह रश्मोरिवाज वैसे ही बाहर के दूसरे देश के हैं और जो शब्द या गान है संस्कृत में नहीं, उनकी अलग ही कोई दूसरी भाषा में हैं। मैं उनका हिंदी में भाषांतर कर के पढूंगा।”
यहां पर मुझे एक बात माननी पड़ेगी। अर्जुन, आरती दोनों ने मेरी गांधर्व विवाह की बात शतप्रतिशत अमल की। आरती और अर्जुन दोनों ने रमेश को चैट में बताया की रमेश का आरती से मिलन कराने में एक मित्र का (मेरा) कितना महत्वपूर्ण योगदान था, और मेरी ही बदौलत आरती ने रमेश से चुदवाने के लिए हाँ कही थी। उन दोनों ने रमेश को यह भी कहा की गन्धर्व विवाह का सारी विधि विधान भी मैं ही करवाऊंगा। रमेश ने उसमें कोई आपत्ति नहीं जताई।
यहां पाठकों को स्वाभाविक रूप से यह जिज्ञासा होगी की ऐसा क्या विधिविधान मैंने बताया जो इतना ज्यादा उत्तेजक और रोमांचकारी होगा? हालांकि रमेश और आरती के गन्धर्व विवाह में मैं भौतिक रूप से वहा हाजिर तो नहीं था पर वहाँ जो कुछ भी हुआ मैं आप सब को साक्षात् रूप में बताऊंगा जैसा की मैंने वीडियो कॉल के माध्यम से देखा और गन्धर्व विवाह की विधि को संपन्न किया।
अगल दिन चैट में अर्जुन ने मुझे बताया की रमेश साड़ी, मंगल सूत्र, अपनी बीबी की फोटो, और कई सारा कुछ और सामान लेकर पहुँच रहा है।
अर्जुन अपना शरारती अंदाज छिपा नहीं पाया जब कुछ मुस्कुराते हुए अर्जुन ने मुझे कहा, “जबसे रमेश का हमारे घर आने का प्लान कन्फर्म हुआ है, आरती बाहर से तो एकदम ऐसे दिखावा कर रही थी जैसे उसे कुछ पड़ी ही ना हो, पर उसके होंठों पर से मुस्कान जाने का नाम नहीं ले रही। उसके चेहरे पर हंसी रोकने की लाख कोशिश करने पर भी रुक नहीं रही…
आरती ऐसे फुदक रही है जैसे माधुरी दीक्षित का गाना है ना, “मेरा पीया घर आया ओ रामजी।“ बात यहां तक तो ठीक है, पर आरती कई बार पार्लर जा चुकी है। कभी अपनी भौंहें तो कभी फेसिअल। कभी पेडीक्योर तो कभी वैक्सिंग माने सारे बदन के बाल साफ़ करवा रही है। पहले तो आरती मेरे सामने भी अपना नंगा बदन दिखाने से शर्माती थी। पर अब तो उस पार्लर वाली लड़की के सामने नंगी हो कर आरती ने अपनी चूत के बाल भी साफ़ करवा लिए हैं…
बात यहां तक पहुँच चुकी है की अब चूँकि रमेश के आने में चंद दिन ही बाकी हैं तो आरती मुझे कुछ ना कुछ बहाने कर चोदने भी नहीं देती। शायद वह अपनी चूत की सुंदरता, अपनी सारी मादकता, उत्तेजना और कौमार्य (कुछ दिनों का ही सही!!!!) अपने प्रियतम की चुदाई के लिए बचा कर रखना चाहती है।”
अर्जुन ने लिखा की “मैंने आरती को यह कह कर चिढ़ाया भी सही। “अरे तुम तो रमेश के आने के इंतजार में बहुत फुदक रही हो! क्या बात है? अपने प्रियतम के आने की बड़ी तैयारी हो रही है!”
आरती ने मुंह बनाते हुए कहा, “तुम मुझे चिढ़ाओ मत! मैंने तुम सब मर्दों के चक्कर से परेशान हो कर हाँ कहा है। अगर तुमने मुझे ज्यादा परेशान किया ना तो मैं मना कर दूंगी, हाँ!”
अर्जुन ने हँसते हँसते हुए कहा, “अरे, तुम तो नाराज हो गयी। मैं तो बस मजाक कर रहा था। अरे जब रमेश से चुदवाना ही है तो फिर अच्छे ढंग से ही चुदवाना चाहिए। इस बात से तो मैं भी सहमत हूँ। शादी की पहली रात के लिए भी तो तुम ऐसे ही तैयार हुई थी।”
अर्जुन की खरीखरी बात सुनकर आरती ने धीमी सी आवाज में कहा, “तुम ना, मुझे इस वक्त छेड़ो मत! मेरी शादी तो तुमसे हो चुकी है। यह तो बस तुम्हें खुश करने के लिए मैं दिखावा कर रही हूँ।” कह कर आरती शर्माती हल्का सा मुस्कराती हुई अर्जुन को एक हल्का सा धक्का दे कर रसोई में चली गयी। आरती का यह चरित्र परिवर्तन अर्जुन के लिए इतना मादक और लण्ड को खड़ा कर देने वाला था की अर्जुन ने अपने पायजामे में खड़े लण्ड को पैजामे के ऊपर से ही थोड़ा सा सेहला कर सांत्वना देने की कोशिश की।
आखिर वह दिन आ ही गया। रमेश को लेने अर्जुन स्टेशन पर गया था। कुछ ही समय में आरती उसकी तगड़ी चुदाई करने वाले मर्द से मुखातिब होने वाली थी। पाठक कल्पना कर सकते होंगे की अपनी चुदाई एक ऐसे तगड़े मर्द से होने वाली थी जो बड़ी बड़ी वेश्याओं को भी नानी याद दिला देता था, यह सोच कर आरती के मन में क्या चल रहा होगा उस समय? आगे पता नहीं क्या होगा यह सोच कर आरती के रोंगटे बार बार खड़े हो जाते थे।
तय समय अनुसार रमेश को स्टेशन से लेकर अर्जुन सुबह ही सुबह घर पहुँच गया। उस समय करीब सुबह के आठ बजने वाले थे।
रमेश जैसे ही अर्जुन के घर पहुंचा तो सारी तैयारी देख कर दंग रह गया। पूरा घर बढ़िया तरीके से सजा हुआ था। सारे घर को रंगरोगन कर चमकता बनाया गया था। हर तरफ तोरण, फूलमालाएं और सुशोभन टंगे हुए थे। घर में से शेहनाई की मधुर आवाज सुनाई दे रही थी। जैसे ही अर्जुन ने घर के दरवाजे की घंटी बाजायी तो फ़ौरन आरती ने दरवाजा खोला।
रमेश आरती को देख कर हैरान रह गया। आरती ऐसी तैयार थी जैसे वह कहीं घूमने जाना हो। अर्जुन भी आरती को इस तरह तैयार देख कर हैरान हो गया। यह तो अक्सर आरती के उठने का टाइम था। इतनी सुबह आरती कभी तैयार होती नहीं थी। वैसे तो आरती सुबह करीब साढ़े दस बजे नहाती थी और तब तक रात के कपड़ों में ही इधर उधर घूम कर घर का सारा काम करती रहती थी। पर उस दिन आरती एकदम जल्दी सुबह ही नहा धो कर नए से कपडे पहन कर सजधज कर तैयार थी।
दरवाजे में खड़ी आरती को रमेश ने जब पहली नजर देखा तो उसका हाल अर्जुन ने मुझे बताया। रमेश को शायद यकीन ही नहीं हुआ की जिससे वह शादी करने वाला है और जिसकी वह तगड़ी चुदाई करने वाला है वह इतनी सुन्दर होगी। रमेश ने हालांकि आरती को नेट के माध्यम से देखा था, उसकी फोटो देखि थीं पर आमने सामने आरती किसी फिल्म की खूबसूरत हिरोइन से कम नहीं लग रही थी।
साथ ही साथ रमेश को कुछ निराशा भी हुई। उसने नहीं सोचा था की आरती इतनी नाजुक और छोटी होगी। रमेश को उस समय महिला अदाकारा दिव्या भारती की याद आ गयी। आरती दिखने में दिव्या भारती से काफी मिलती जुलती थी।
रमेश की चुदाई से अच्छी खासी वेश्याएँ भी तौबातोबा करतीं थीं तो यह छुटकी नाजुक लड़की उसकी चुदाई कैसे झेल पाएगी यह सोच कर रमेश शायद हैरान रह गया होगा। रमेश को मिलते ही रमेश ने आरती की आँखों में अजीब सी चमक देखि। रमेश के मन में आरती के लिए कुछ एक अजीब सा अपनापन और आकर्षण महसूस हुआ।
रमेश को तो जैसे आरती इस धरती की नहीं कोई स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लग रही थी। आरती को देखते ही रमेश का मन जो पहले से ही आरती ने चुरा लिया था वह अब पागलपन की हद तक पहुँच रहा था। रमेश अपने आप को बड़ा भाग्यशाली मान रहा था की ऐसी खूबसूरत प्यारी लड़की सिर्फ उसे चोदने को ही नहीं मिलेगी पर अब वह उसकी पत्नी भी बनेगी।
आरती को देखते ही सबसे पहले रमेश की नजर आरती के स्तनों पर पड़ी। आरती ने गुजराती बंजारों वाली अलग अलग रंगों के धागों से बुनी हुई सुन्दर परंपरागत चोली पहन रक्खी थी। चोली में बिच बीच में शीशे के गोल टुकड़े बने हुए थे। चोली में से आरती की सुडौल मस्त चूँचियों की नुकीली निप्पलोँ का उभार दिख रहा था।
साड़ी पर लपेटी चुन्नी उन निप्पलोँ के उभार को छुपा नहीं पा रहीं थीं। आरती के सर पर योजना पूर्वक सजाये घने बाल आरती की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे। वह बालों की एक एक लट आरती के दोनों कानों के इर्दगिर्द मनमोहक तरीके से घूम रही थी, जिसे देख रमेश का दिल बैठा जा रहा था।
आरती की मदमस्त आँखों में रमेशजी को देख कर जैसे एक शुरुर सा दिख रहा था। आरती कोई उसे रमेशजी को ताड़ते हुए देख ना ले वैसे चोरी छुपी बार बार तिरछी नज़रों से रमेशजी को देखने की कोशिश कर रही थी। आरती के नजर रमेशजी के सर से पाँव तक उनका निरिक्षण करने में लगीं थीं।
आरती ने दरवाजा खोला और पहली बार रमेशजी को अपनी आँखों से आमने सामने देखा तो उसके होशोहवास जैसे उड़ गए।
उसे पता था की रमेशजी एक अच्छेखासे तगड़े मर्द हैं। पर जब प्रत्यक्ष उन्हें अपने सामने खड़े हुए देखा तो आरती को समझ में आया की क्यों यह इंसान अच्छी अच्छी औरतों को भी चुदाई में तारतार कर देता होगा। रमेशजी जैसे लम्बे चौड़े तगड़े मर्द के सामने अपनी छोटीसी हस्ती का कोई मुकाबला ही नहीं था।
आरती के मन में आरती ने रमेशजी के साथ जब चुदाई की कल्पना की तो वह हिल सी गयी। जब रमेशजी आरती को नंगी करके निचे सुलाकर उस के ऊपर चढ़ेंगे और आरती को अपने निचे दबाएंगे तो आरती तो दिखेगी ही नहीं। आरती का पूरा बदन काँप उठा जब आरती को रमेशजी के लण्ड की तस्वीर याद आयी।
रमेशजी का लण्ड की फोटो और उसका वीडियो देख कर आरती को एक उत्तेजना सी तो जरूर हुई थी, पर अब चंद घंटों का ही सवाल था की वही लण्ड अब आरती की छोटी सी चूत में घुसना था और उसको चोद चोद कर उसका बुरा हाल करने वाला था।
पढ़ते रहिये, यह कहानी आगे जारी रहेगी..
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