नमस्कार दोस्तो आपका दोस्त दीप पंजाबीे हाज़िर है आपकी सेवा में एक नई कहानी के साथ जो के एक दूर की रिश्तेदारी की भाभी के साथ सेक्स से सम्बंधित है।
सबसे पहले अपना परिचय दे दू मेरा नाम दीप पंजाबी, पंजाब से हूँ उम्र 30 साल कद 5 फ़ीट 3 ईन्च रंग गेंहुआ है।
सो ज्यादा वक्त न जाया करते हुए सीधा कहानी पे आते है।
गांव की पढ़ाई पूरी करके मैंने आगे की पढ़ाई के लिए पंजाब के बठिंडा शहर में दाखिला ले लिया शहर घर से काफी दूर था। तो रोज़ाना आना जाना कठिन काम था। सो एक जान पहचान वाले मित्र की मदद से मैंने वहां ही एक कमरा किराये पे ले लिया और उसमे रहने लगा। वैसे तो घर बहुत बड़ा था। परन्तु मैं एक कमरा ही यूज करता था। रोज़ाना कॉलज से घर, घर से कालज यही मेरा रूटीन था
कुछ महीने पहले की बात है के कालज में किसी वजह से एक हफ्ते की छुट्टी थी। इधर घर पे रहकर बोर हो रहा था तो गांव वाले घर से फोन आया के पापा के मामा के बेटे की शादी है और जो के इसी शहर में है। उन्होंने हमे खास तौर पे निमन्त्रण दिया है । हम तो गांव से आ नही पाएंगे तो तुम ही एक दो घण्टे चले जाना। तो मैंने सोचा बढ़िया मौके पर शादी आई है, जिस से मन भी बहल जायेगा और खाली समय का सदपयोग भी होजेगा।
यही सोचकर अगले दिन ख़ुशी से तैयार होकर मैं शादी पे गया हुआ था। वहां और भी रिश्तेदार आये हुए थे। जो के मेरे लिये सभी अजनबी थे। उनमें से एक भाभी अमृता जिसके बारे में बतादू जो के हमारी दूर की रिश्तेदारी में भाभी लगती थी। जो के अकेली अपने बेटे के साथ शादी में आई थी। उसकी उमर 30 साल की होगी।
उसका पति किसी प्राइवेट कम्पनी में काम करता था। उनका एक 6 साल का बेटा था। सो उनसे अच्छी जान पहचान थी, बस उनसे बात कर लेता था। वो भी इतने अजनबी लोगो में सिर्फ मुझसे बात करके खुद को कम्फर्टेबल महसुस कर रही थी।
पंजाब की शादियों का तो पता ही है आपको क्या धूम धड़ाके से होती है। सारा माहौल ख़ुशी के रंग में रंग जाता है । दूल्हे को नहलाने की रसम चल ही रही थी के एक और हफडा दफडी सी मच गयी। पता चला अमृता भाभी का एक्लौता बेटा खेलते खेलते छत की सीढ़ियों से निचे गिर गया है और माथे पे गहरी चोट की वजह से खून भी बहुत बह गया। भाभी का रो रो कर हाल बुरा हो गया था। भाभी गोद में खून से लथपथ बेहोश बेटे को लेके रोती बिलखती बोल रही थी, “हे भगवान ये क्या हो गया, अब मैं इसके पापा को क्या जवाब दूंगी?
सब आपस में खुसर फुसर कर रहे थे। एक औरत तो यहाँ तक कह रही थी, पहले बच्चों का ध्यान नही रखती बाद में ढोंग करती है। मुझे उसपे बड़ा गुस्सा आ रहा था। सब दर्शक बने देख रहे थे किसी की भी हिम्मत नही हुई के बच्चे को हॉस्पिटल ले जाये। मुझसे रहा नही गया और गुस्से में चिलाया, क्या सबकी इंसानियत मर गयी है, आज किसी गैर का बच्चा है इस लिए चुप हो, अगर इसकी जगह आप में से किसी का होता चुप रहते क्या, यही मरने के लिए छोड़ देते क्या ?
नही साथ जाना तो कोई गाड़ी ही देदो हस्पताल तक जाने के लिए, या कोई कोई एम्बुलेंस को ही बुला दो।
इतने में दूल्हे के पापा ने अपनी गाड़ी की चाबी दे दी और मैंने अमृता भाभी को दिलासा दिया, “कुछ नही होने दूंगा तेरे बेटे को भाभी, जहां तक हुई पूरी मदद करूँगा आपकी। हम दोनों ने बच्चे को उठाया और गाड़ी में डालकर अस्पताल की तरफ रवाना हो गए। मैं गाड़ी चला रहा था और भाभी साथ वाली सीट पे गोद में बेहोश हुए बेटे को लेकर बैठी रो रही थी।
भाभी पूरे रस्ते में रोती रही ओर मैं उन्हे होंसला दे रहा था। तकरीबन 30 मिनट बाद हम शहर के लोकल हॉस्पिटल आ गए और जल्दी से स्ट्रेचर मंगवाया अंदर अजय को ले गए इतने में डॉक्टर हमे बाहर ही रुकने का बोल कर अंदर चला गया। इधर बाहर भाभी रो रो कर पागल हो रही थी। मैंने बहुत होंसला दिया पर चुप न हो रही थी।
जिस से मेरा भी दिल उदास हो रहा था। इतने में भाभी ने अपने पति विशाल को फोन लगाया और रोते रोते सारी बात उनको बताई, पर विशाल ने कहा कोई मीटिंग अटेंड कर रहा हूँ। फ्री होकर बात करता हूँ और सारा दिन कोई फोन और न खुद कोई आया। जिस से अमृता का दिल और भी टूट गया।
करीब 30 मिनट बाद डॉक्टर बाहर आया और बोला, “आप मम्मी डैडी है बच्चे के? इस से पहले मैं कुछ बोलता, भाभी ने इशारे से मेरी बांह को दबाके मुझे चुप रहने का बोला और रोते हुए खुद बोली, “हाँ डॉक्टर साब मैं ही इसकी माँ हूँ ओर यह अजय के पापा हैं, वैसे बात क्या है ? कोई घबराने वाली बात तो नही है न।
डाक्टर ने माहौल की नजाकत को समझते हुए मुझे अकेले अपने कॅबिन में बुलाया और बोला, “आपके बेटे का चोट लगने की वजह से बहुत खून बह गया है, जल्दी से पोजटिव बी ग्रुप का खून का प्रब्न्ध करो, वरना बच्चे का बचना मुश्किल है और अपनी पत्नी को संभालिये इस से इनको गहरा सदमा भी लग सकता है और कोमा में भी जा सकती है। जब कॅबिन से बाहर आया तो भाभी मुझसे लिप्ट कर रोने लगी और पूछा, दीप डॉक्टर ने क्या बोला आपको ? अजय ठीक तो होजेगा न,
मैंने भाभी को गले लगाकर चुप होने को कहा, हाँ भाभी अजय ठीक हो जायेगा बहुत जल्दी और हम घर भी चलेगे, और झूठ बोलना पडा के आप बैठो मैं दवाई लेकर आता हूँ क्योंके मुझे खून का प्रबन्ध करने जाना था। उसे पानी पिलाकर बाहर पड़े बेंच पर बिठाकर अंदर डॉक्टर के पास दुबारा जाकर बोला,”आप मेरा खून ले लिए पॉज़टिव बी ग्रुप का है पर हमारे बेटे की जान बचा लीजिये।
डॉक्टर ने कहा,” बहुत ख़ुशी की बात है, यही ही मिल गया खून वरना बहुत जगह पता करना पड़ता और जलद ही नर्स हो आवाज़ लगाई और कागज़ी करवाई और टेस्ट्स करने को बोला।
करीब एक घण्टे बाद मेरा खून निकाल कर अजय को चढ़ाया गया।
थोड़ी देर बाद अजय को होश आया और उसने आँखे खोली और मम्मी मम्मी कह कर रोने लगा। उसके रोने की आवाज़ सुनकर भाभी बाहर से भागी अंदर आई और देखा एक बेड पे मैं और दूजे पे अजय को लिटाया गया है, थोडा घबरा गयी और डॉकटर से बोली, “अब इनको क्या हुआ डॉक्टर साब इनको क्यों लिटाया गया है।
डॉक्टर बोला,” घबराइये नही आपके पति का खून मैच हो गया बच्चे के खून से। अब बच्चा खतरे से बाहर है। दोपहर के बाद इसे आप घर लेकर जा सकते है। डॉक्टर की बात सुनकर भाभी ख़ुशी के आंसू बहाने लगी और हाथ जोड़कर मेरा मन में ही धन्यवाद करने लगी। मैंने इशारे से ही उसका धन्यवाद कबूल किया और बेटे से मिलकर वह बाहर जाकर बैठ गयी। तकरीबन 2 घण्टे बाद जब मुझे डॉक्टर ने फ्री किया और कहा अब आप घर जाकर आराम करो, तुम्हे आराम की सख्त जरूरत है ।
मैंने बोला,” डॉकटर साब मेरे परिवार को भी छुटी दे दो, हम घर जाना चाहते है।
डॉक्टर ने हमारी मज़बूरी समझते हुए हमे जाने की अनुमति दे दी।
मैंने हस्पताल की फीस दी और हम कार से ही घर की तरफ रवाना हो गए, तब तक गहरा अँधेरा छा गया था।
रास्ते में भाभी बोली,”इतनी रात को हम कहा जायेगे दीप, सभी लोग शादी में व्यस्त होंगे कौन सम्भालेगा हमे, और हमारा अपना घर भी बहुत दूर है यहाँ से अब क्या होगा? इतना पता होता मैं आती ही न शादी में, इसके पापा भी तो घर पे नही है काम के सिलसिले से बाहर गए है। अब क्या करुँगी मैं अकेली और रो रही थी।
मैंने कहा,”भाभी जी सब्र रखो, आपको रहने के लिए घर भी मिलेगा और पूरी देखभाल भी। आपको जहां मैं लेकर जा रहा हूँ, वहां आपको कोई परेशानी नही होगी।
उसने आंसुओ से सनी आंखो से मेरे चेहरे की तरफ देखा के शायद मज़ाक कर रहा हूँ, । मैने उन्हें विशवाश दिलाया के घबराओ न मैं आपके साथ हूँ। इतने में रास्ते में एक ढाबा आया। मैंने उत्तर कर वहां से खाना और दूध पैक करवाया और घर आ गया। कार को अपने घर में ही पार्क करे, उनको लेकर अपने रूम में आ गया। कमरे अंदर आकर उसने पूछा,” ये कहा आ गए हम दीप और ये
किसका घर है यहाँ ?
तो मैंने कहा,” घबराइये नही भाभी अपना ही घर समझो इसे।
यहाँ मैं किराये पे रहता हूँ और पढ़ाई करता हूँ। आओ हाथ मुँह धोकर खाना खालो और बच्चेे को दवाई और दूध दे दो।
मेरी बात सुनकर मेरे गले लगकर रोने लगी और बोली, तुम्हारा यह ऐहसान कैसे चुकॉउगी दीप ?
तुमने अजनबी होकर मेरे लिए इतना किया शायद कोई अपना भी न करता और जिनके घर महमान बनकर आई थी उन्होंने बात तक नही पूछी।
आपने मेरे बेटे को एडमिट करवाया, अपना खून दिया, दवाई और खाने का खर्चा उठाया, और अब रहने को छत भी दी है।
मैंने उनको गले से अलग करके बोला
ये सब सिर्फ इंसानियत के नाते किया है और पूरी शादी में सिर्फ आपको ही जानता था सो मुझसे रहा नही गया मदद किये बिना।
अब चुप हो जाओ।
आज रात हम लेट कर खूब बाते करेंगे फिलहाल खाना खालो, उसने खाना परोसा और खुद भी खाया और मुझे और अपने बेटे को भी खिलाया और दवाई देकर अजय को लिटा दिया। दवाई के असर से अजय गहरी नींद में चला गया।
सर्दी की रात थी और कमरे में एक ही बड़ा बेड था, मैंने उन्हें ऊपर उसके बेटे के साथ सोने का आग्रह किया और खुद निचे फर्श पे बिस्तर डाल कर सोने की तयारी करने लगा। क्योंके उस वक़्त मेरे दिल में उनके लिये कोई भी गलत विचार नही था।
उसे जब पता चला खुद निचे सो रहा हूँ तो बोली,” अब और कितने एहसानो के निचे दबाओगे आप मुझे, पहले क्या कम किये है। हम अड्जस्ट कर लेंगे आप ऊपर आ जाओ नही तो सर्दी लग जायेगी आपको। जो हमसे बर्दाश्त नही होगा। बेटे को एक साइड पे सुलाकर बीच में खुद और दुसरी साइड मैं लेट गया। वो अपने कम्बल में अपने बेटे के साथ लेटी थी और मैं अकेला, उसकी अपने बेटे की तरफ पीठ थी और मेरी तरफ मुँह तो बाते करते करते मैंने पूछा, “एक बात समझ नही आई भाभी के आपने चुप क्यों करवाया मुझे जब डॉक्टर ने पूछा था इसके पेरेंट्स आप हो ?
वो बोली, “पहले तो अब मैं आपकी भाभी नहीं हूँ, नाम लेकर बुला सकते हो अमृता और दूसरी बात एक पिता ही अपनी औलाद की खातिर इतना कर सकता है, जितना आज आपने सुबह से शाम तक किया, सिर्फ बच्चा पैदा करने से बाप नही बन जाता कोई, बच्चे की हर एक जरूरत का ख्याल, बीमारी में दवाई आदि का ख्याल करना भी पिता के हिस्से आती है,
मैं — नही भाभी ऐसा नही बोलते भाई साब की कोई मजबूरी रही होगी के आ न सके, वरना किसका दिल करता है अपनी औलाद को तड़पता देखे ।
अमृता — नही दीप, वो बात अलग है के पता न चले कोई बात, पर पता चलते तो उनको आना चाहिए था न। आने का छोडो दुबारा फोन करके जानना जरूरी भी नही समझा के हम किस हाल में है, पैसा धेला पास है भी या नही। एक ही तो बेटा है हमारा, अगर आज उसपे संकट है खुद पिता साथ नही होगा तो कौन देगा । हर बार आप जैसे लोग मौके पे थोड़ी न मिलते है। आप न वह होते शयद पता नही क्या होता और आपने दोनों काम किये है पिता वाले इसे खून देकर नया जन्म भी दिया और इसकी देखभाल भी की है। इस हिसाब से मैं इसकी माँ और आप पापा हुए न। आज आपकी दीवानी हो गयी हूँ मैं ।
(उसकी बात मैं सुनके असमन्जस में पड गया)
सो अजय के पापा आई लव यू सो मच, और उसने मेरे होंठों पे ही लेटे लेटे एक किस कर दी। जिस से मेरी थोड़ी बहुत रहती शर्म भी निकल गयी और मैंने भी किस का रप्लाई किस में दिया।
वो बोली,” देखो दीप मैं आपके इस एहसान का बदला पैसे से तो नही उतार सकती, हाँ आज की रात के लिए आपकी पत्नी बनके आपको शरीरक सुख जरूर दे सकती हूँ।
वो मेरे बालो में ऊँगली घुमा रही थी जिस से एक असीम मज़ा आ रहा था। उसके कोमल बदन का स्पर्श पाते ही मेरा काम देव जाग गया। उसका गर्म गर्म बदन एक अलग ही मजा दे रहा था । जब उसपे काम ज्यादा ही हावी हो गया फेर बोली,” यह समय सोचने का नही है अजय के पापा कर लो अपनी हसरते पूरी, बनालो मुझे अपनी सदा के लिए !
मैं मर रही हूँ तुम्हारा साथ पाने के लिये। आज बहुत समय है हमारे पास कल को क्या पता क्या होना है जो समय पास है खूब मज़े लेलो इसके, और बैसे भी किसी शायर ने भी कहा है
आने वाला पल, जाने वाला है हो सके तो इसमें ज़िन्दगी बितालो कल को ये जाने वाला है,,,, हो हो इतना कुछ रुलाई वाली एक ही लडखडाती हुई साँस में बोल गई । ऐसा पहली बार महसूस किया मेने के कोई स्त्री मुझपे इतना मेहरबान हो रही है। पता नही इतना वैराग मेरे लिए उसे कहाँ से आ रहा था?
वो मेरी छाती से कम्बल उतार कर कमीज़ के बटन खोलने लगी, मैं चुप चाप उसकी बाते सुनता जा रहा था और उसे सहला भी रहा था। सभी बटन खोलकर उसने मुझे बैठ जाने को बोला, मै एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसकी हर बात मानता चला गया।
उसने मेरी कमीज़ उतार कर बेड पे ही फेंक दी और छाती के बालो में हाथ फेरते हुए होंठो पे किस करती हुई निचे पेंट की तरफ हाथ सरकाने लगी। मैंने उसकी दिक्कत को आसान करते हुए खुद ही पेंट को निकाल कर फेंक दिया और उसके होंठों का रसपान करने लगा। उसने खुद ही अपनी सलवार कमीज़ निकाल दी। अब हम दोनों नंगे बदन एक दूसरे को ऐसे लिपटे थे जैसे चन्दन को काला नाग लिपटता है।
मैं उसके उपर लेट कर उसके होंठ, और सफेद दूधुुओ को दबा दबा कर पी रहा था। वह नीचे लेटी आँखे बन्द करके मौन कर रही थी। सर्द रात में उसके शरीर की गर्मी आनन्द दे रही थी। करीब 10 मिनट के फोरप्ले के बाद बोली,” अब रहा नही जा रहा दीप प्लीज़ डाल दो, मेरी चूत की सूखी धरती को अपने लण्ड के पानी से सींच दो। बस तुझमे समा जाना चाहती हूँ आज की रात में।
समय बर्बाद न करो प्लीज़ ।
उसकी व्याकुलता को समझते हुए मेने उसकी एक टांग को अपने कंधे पे रखकर अपने लण्ड को उसकी चूत के मुँह पे सेट करके हल्के से धक्का दिया तो चूत गीली होने की वजह से थोडा सा लण्ड उसकी चूत में धँस गया। काफी दिनो से चूदी न होने के कारण चूत थोड़ी टाइट हो गयी थी।
उसने थोडा दर्द महसूस करते हुए रुकने का इशारा किया और अपनी पोजीशन सेट करके काम दुबारा स्टार्ट करने को बोला।
इस बार थोडा पीछे हटकर धकका लगाया तो आधे से ज्यादा हिस्सा घुस गया। मैंने अपना काम जारी रखा और थोड़ी देर बाद महसुस किया के मेरा लण्ड उसकी बच्चेदानी को हिट हो रहा है। करीब 10 मिनट की चुदाई के बाद उसका शरीर अकड़ने लगा और मुझे लिपटते हुए पीठ पे नाख़ून गड़नें लगी और एक लम्बी आह से झड़ गयी।
लेकिन मेरा अभी काम थोडा बाकी था। सो तेज़ तेज़ शॉट्स लगता अगले 5 मिनट में मैं भी उसकी चूत में झड़ गया और उसके ऊपर थक कर लेट गया। हम दोनों के चेहरे पे सन्तुष्टि के भाव साफ दिख रहे थे।
रात काफी होने के कारण फेर हमने बाथरूम में जाकर अपने आपको धोया और हम कपड़े पहनकर एक दूजे को जफ्फी डालकर एक ही कम्बल में सो गए। सुबह उठकर अमृता ने चाय बनाई और मेरे गाल पे किस करके प्यार से उठाकर बोली, ऐ जी उठइये न, कब तक सोते रहोगे, आज हमने घर भी जाना है । मैंने उसको पुछा के डार्लिंग आपने चाय पी क्या। तो उसने बोला,”आपके बिना कैसे पी सकती हूँ, जानेमन।
तो मैंने उसे अपनी गोद में बिठाया और उसी कप की पहली चुस्की उसको लगवायी। एक घूँट पीकर बोली, आप पी लो अब, मैं और पी लुंगी। इतना कहके मुझसे अलग हुई और अपने बेटे को उठाके चाय पीलाने लगी। उसके बाद हम दोनों नहाये और साथ ही खाना खाया।
जब थोड़ी दोपहर सी होने लगी तो मुझसे बोली,” दीप तुम्हे छोड़कर जाने को दिल तो नही करता, पर मज़बूरी है जाना पड़ेगा। एक रात में आपसे इतना गहरा रिश्ता जुड़ गया है । जो शायद 10 सालो की शादी में विशाल से नही जुड़ा। मैंने उन्हें तयार होने को बोला और खुद भी तयार हो गया।
आधे घण्टे बाद मेने उनको गाड़ी में बिठाया और उनके ठिकाने पे छोड़ आया। आते वकत हमने अपने नम्बर आपस में शेयर किये और बाय बोलकर इनसे विदा ली।
कभी कबार अमृता का फोन आ जाता है लेकिन मेने कभी पहले नही किया।
यह थी कहानी आपको कैसी लगी भेजदो अपने कोम्मेन्टस इस ईमेल पर मेरी मेल आई डी है “deep5696@gmail.com”.