“हे मेरी सुख दायिनी, हे मेरी निजजन – शुद्धिकरण कर मैं तुम्हें करता हूँ अर्पण।
अब तक तुम बस थी मेरी हरदम मेरे साथ अब मैं उसके हाथ में दूंगा तेरा हाथ।
प्यार करूंगा मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा साथ पर जब उसके संग हो वही तुम्हारा तात।
तुम हम दोनों की बनी मिलीजुली सौगात चोदेगा वह अब तुम्हें डटकर सारी रात।”
अर्जुन मेरे रटाये हुए बोल कर नंगी आरती को नहलाने लगा। अर्जुन ने मेरी बतायी हुई विधि के अनुसार नंगी आरती को अच्छी तरह से अपने हाथों से नहलाया और आरती को नहला कर साफ़ तौलिये से अपने हाथों से आरती का बदन पोंछ कर उसे साफ़ कर फिर उसे अपने हाथों से नए साफ़ कपडे पहनाये। यह सब करते हुए मारे उत्तेजना के अर्जुन के हाथ काँप रहे थे। वह आखरी वक्त था जब अपनी पत्नी के बदन पर सिर्फ अर्जुन का ही स्पर्श होता था।
कुछ ही समय में अपनी पत्नी के पुरे नंगे बदन पर एक नया मर्द अपने चिन्ह स्थापित करेगा और उसकी पत्नी के पतिव्रता शील को तारतार कर देगा। तो दूसरी और आरती का भी बुरा हाल था।
वैसे भी आरती होनेवाली चुदाई से बहुत ज्यादा उत्तेजित थी। अब मेरे उस श्लोक में स्पष्ट रूप से जब अर्जुन ने आरती को कहा की रमेश तुम्हें पूरी रात चोदेगा तो आरती का हाल और ख़राब हो रहा था।
अर्जुन के हाथों से नहाते हुए आरती अपने पति के स्पर्श को अपने हर एक अंग पर महसूस कर रही थी। परन्तु उस स्पर्श से उसे कोई भी उत्तेजना महसूस नहीं हो रही थी क्यूंकि आरती को उस रात दो नए सख्त मजबूत बाजू, एक नया मुंह, नयी रसीली जीभ, नयी करारी मर्दाना टांगें, काले घने बालों से भरा हुआ नया मर्दाना सीना और एक नए सख्त लम्बे मोटे लण्ड से रगड़ रगड़ कर चुदाई करवाने की अभिलाषा जो थी?
कपडे पहनाने के बाद अर्जुन आरती का हाथ थामे हुए मेरे बताये हुए निर्देश के अनुसार उसे ड्राइंग रूम में ले आया जहां रमेश आरती का इंतजार कर रहा था।
रमेश भी नहा धो कर अपनी शादी के लिए लाये हुए ऊपर लखनवी कुर्ता, निचे पतली सी धोती, गले में एक खेस (दुपट्टा) और सर पर पारम्परिक पगड़ी पहने हुए हाजिर हुआ।
रमेश उस लिबास में काफी आकर्षक लग रहा था। जैसे ही आरती उस कमरे में दाखिल हुई की मैंने देखा की रमेश का लण्ड उसकी निक्कर में फिर से खड़ा हो गया और फिर से रमेश की धोती में एक बड़ा सा तम्बू दिखाई देने लगा। रमेश ने जब यह महसूस किया तो बड़े ही अटपटे ढंग से रमेश उस तम्बू को छिपाने की कोशिश करने लगा।
मैंने रमेश, अर्जुन और आरती तीनों को कहा, “देखो अब अर्जुन को अपनी ब्याहता पत्नी आरती को रमेश को भोगने के लिए, मतलब चोदने के लिए सौंपना है। जैसे शादी में कन्यादान के समय कन्या का पिता अपनी बेटी को एक पराये मर्द के हाथ में सौंपता है, उसका कन्या दान करता है, वैसे ही अर्जुन आरती के पति होते हुए भी आज तुम पति और पिता दोनों की भूमिका निभा रहे हो। आज तुम्हारा सौभाग्य है की तुम आरती का आंशिक कन्यादान कर रहे हो…
आंशिक इस लिए की आरती कन्यादान के बाद भी तुम्हारी पत्नी बनी रहेगी। अर्जुन जब आरती का हाथ रमेश के हाथ में सौंपेगा तो उसकी एक विधि है। सबसे पहले आरती तुम्हें अपने दोनों हाथ जोड़ कर अर्जुन को अपने आपको रमेश के हाथ में सौंपने की प्रार्थना करनी होगी। अब तुम मेरे पीछे बोलो…
हे मेरे प्यार के भोक्ता तुम अकेले थे मेरे मैं अकेली थी तुम्हारी ले लिए थे जब फेरे।
आज रमेशजी मेरे उपपति बन जायेंगे आपकी सम्मति से अब वह भी मुझ को पाएंगे।
उन से मुझको शेयर करना ना दुखी होना कभी दोनों पति की वासना पूरी करुँगी मैं सभी।”
मेरी पंक्तियाँ सुनकर आरती की आँखों में आंसू छलक गए। रूंधते हुए गले से आरती ने वह पंक्तियाँ बोलीं। मैंने फिर अर्जुन को आरती का हाथ थामे आगे आने को कहा। मैंने अर्जुन से कहा, “अर्जुन, अब तुम्हें आरती की प्रार्थना स्वीकार करनी है। तुम्हें बोलना है,
“ओ मेरी प्यार की देवी, मेरी अर्धांगिनी सुनो
रमेशजी को पति रूप में आज तुम बेशक चुनो।
ना शिकायत ही करूंगा ना कोई शिकवा कभी
प्यार से बन जाओ उनकी बाँहों में जाओ अभी।
एक है अर्जी मेरी के मुझ को ना तुम छोड़ना
उनका दिल भी रखना पर मेरा जिगर ना तोड़ना।
वह भले चोदे तुम्हें और प्यार भी कितना करे
पर न जाना तुम कभी नाराज हो घर से मेरे।”
हालांकि मैंने जो निर्देश दिए थे उसमें चोदे शब्द नहीं लिखा था। पर जहां मैंने भोगे शब्द लिखा था वहाँ अर्जुन ने खुल कर चोदे शब्द का प्रयोग किया। आरती अर्जुन को रमेश के सामने चोदे शब्द के प्रयोग से कुछ थोड़ी नाराज सी लग रही थी। पर आखिर में उसे यह स्वीकार करना ही पड़ा की वास्तव में अर्जुन जो कह रहा था वह एक सच्चाई तो थी ही।
रमेश ने अपनी सज्जनता दिखाते हुए चोदना शब्द का इस्तेमाल नहीं किया और अर्जुन का हाथ थाम कर कहा, “मैं रमेश तुम्हें आज यह वचन देता हूँ की मैं भी तुम्हें मेरी नवविवाहिता पत्नी आरती के मूल संवेधानिक पति के रूप में स्वीकार करता हूँ। आज से तुम्हें भी मेरी पत्नी आरती को भोगने का उतना ही अधिकार होगा जितना की मेरा होगा।
अब से मैं शारीरिक सम्भोग के लिए मेरी पत्नी को तुमसे शेयर करूंगा। हम दोनों अब हमारी बीबी आरती को भोगने के अधिकारी होंगे। तुम जब मेरी पत्नी आरती को भोगोगे तो मैं कोई भी इर्षा नहीं करूंगा या दुखी नहीं होऊंगा और तुम्हें आरती को भोगने देने में पूरा सहयोग दूंगा।”
उस समय जो भाव मैंने आरती की आँखों में देखा वह अवर्णनीय था। आरती अर्जुन के त्याग से गदगद हो गयी थी। अक्सर पति पत्नी को अपनी मिलकत समझता है और अगर पत्नी किसी दूसरे मर्द से सम्भोग करे या प्यार का कुछ सांकेतिक भी आदान प्रदान करे तो पति के मरदाना अभिमान को जबरदस्त ठेस पहुँचती है।
हालांकि पति एक साँड़ की तरह अगर दूसरी औरत को चोदता है तो इस बात को जानते हुए भी पत्नी उसका संसार आहत न हो इस लिए उसे कड़वा घूंट समझ कर पी लेती है। पर यहां तो बात बिलकुल उल्टी थी। अर्जुन सामने चलकर आरती को दूसरे पुरुष से सम्भोग का आनंद दिलाने के लिए उत्सुक था। यह बलिदान देख कर आरती की आँखें झलझला उठीं।
आरती के भाव देख कर मैंने कहा, “आरती तुम्हारा भाव सोच कर मैंने दो पंक्तियाँ लिखीं थीं। वह इस विवाह की विधि में नहीं आती पर मैं समझता हूँ की इस हालात में तुम उन्हें दुहराना चाहोगी।”
आरती ने मेरी और आंसू भरी आँखों से देखते हुए अपना सर हिलाकर “हाँ” का इशारा किया। मैंने कहा, “तो फिर मेरे पीछे बोलो,
पति भी तुम पिता भी तुम, तुम मेरा संसार हो; पति सिर्फ नहीं मेरे तुम तो साक्षात प्यार हो।
विविध सम्भोग का आनंद दिला कर तुमने मुझे दिल से बना दिया दासी तुम मेरी सरकार हो।‘
अर्जुन को अपने बाहुपाश में बाँध कर आरती ने अर्जुन से कहा, “आज अंकल ने इन पंक्तियों से मेरी भावनाओं को सही परिपेक्ष में पंख दिए हैं। आज मैं उड़ना चाहती हूँ, क्यूंकि तुमने मुझे उड़ने की आझादी दी है। मेरे प्यारे बुद्धूराम।” यह कह कर अपने आँसूं पोंछती हुई आरती ने अर्जुन से लिपट कर अर्जुन के होँठों से अपने होँठ कस कर दबाये और अर्जुन और आरती दोनों मेरे और रमेश के देखते हुए एक घनिष्ट आलिंगन और चुम्बन में जुट गए।
उस समय रमेश भी अपनी आँखों में आ रहे आँसुंओं को रोक नहीं पाए।
जब आवेश के पल बीत गए तब मैंने अर्जुन को एक कठौत में साफ़ पानी लाने को कहा। मेरे कहने पर उसमें थोड़ा सा कुमकुम डाल कर उसे लाल किया गया और थोड़ा इत्र डालकर उसे सुगन्धित किया गया। आरती को एक कुर्सी पर बिठा कर आरती के पाँव उस कठौत में रखे गए। उसके बाद मैंने रमेश को आरती के चरण प्रक्षालन मतलब झुक कर आरती के पाँव धोने को कहा। पाँव धोते हुए मैंने रमेश से कहा की तुम मेरे पीछे पीछे यह श्लोक जिसका की मैंने हिंदी में अनुवाद किया है वह बोलो।
रमेश वह श्लोक मेरे पीछे पीछे बोलने लगा। श्लोक था:
“हे मेरी आरती देवी हे मेरी सुख दायिनी, मेरे संग रमण करना स्वीकारो हे कृपामयी।”
यह श्लोक पांच बार बोलते हुए आरती के पाँव धोने के बाद साफ़ कपडे से पोंछ कर रमेश ने आरती के चरणों में अपना सर झुकाया। सर झुका कर आरती के चरणों में प्रणाम करने का मतलब था की रमेश आरती से प्रेम (माने सेक्स अथवा चुदाई) करने की इजाजत की भीख मांग रहा था।
रमेश आरती से जीवन भर के लिए शैया संगिनी बनकर माने पलंग में साथ सो कर रति क्रीड़ा माने चुदाई में पूरा साथ देने के लिए प्रार्थना कर रहा था। मेरे बताये हुए आदेश के अनुसार आरती को अपने पाँव में झुके हुए रमेश के सर पर हाथ रख कर उसे आशीर्वाद देना था।
यह आशीर्वाद दे कर आरती को यह सन्देश देना था की “हे मेरे स्वामी, हे मेरे पति, हे मेरे पुरुष, हे मेरे रक्षक, मैं तुम्हें अपने पति के रूप में स्वीकार करती हूँ। यह स्वीकार करके मैं तुम्हें मुझसे रति क्रीड़ा कर के स्वयं आनंद लेने की और मुझे रति क्रीड़ा का आनंद देने की इजाजत देती हूँ।’
मतलब मैं तुम्हारे सर पर हाथ रख कर तुम्हें यह इजाजत देती हूँ की पति के रूप में अब तुम मुझे चोद सकते हो और मुझे तुम चुदाई का पूरा सुख दोगे और तुम मुझको चोद कर चुदाई का सुख खुद भी भोगोगे।
मैंने आरती से कहा, “अब तुम रमेश के सर पर हाथ रख कर यह श्लोक कह कर आश्वस्त करो की हे मेरी चूत रूपी फूल की इच्छा रखने वाले तुम अब मेरे पति बन गए हो। अब तुम मुझे भोग सकते हो। साथ में उसे यह वचन लो की वह तुम्हें कभी दुखी नहीं करेगा। मेरे पीछे यह श्लोक दोहराओ।
हे मेरे प्यार के इच्छुक भँवरे मेरे पुष्प के रस्मो रिवाज से तेरी बन गयी हूँ मैं अभी।
भोग सकते हो मुझे तुम मैं तुम्हारी संगिनी रखोगे सदा सुखमें करोगे ना दुखी कभी।”
मेरे निर्देश के अनुसार आरती ने तब रमेश के सर पर हाथ रख कर वह श्लोक दोहराया। उस समय आरती ने जब रमेशजी की और देखा तब आरती की आँखें जुबान से बिना कुछ बोले कह रही थीं, “मैं आरती, अर्जुन की वैध रूप से विवाहिता पत्नी तुम्हें मेरे गन्धर्व पति के रूप में स्वीकार करती हूँ। अब तुम भी मेरे पहले पति अर्जुन की तरह मुझे चोद सकते हो।”
कुछ देर बाद आरती ने अपना मौन तोड़ा और रमेशजी से कहा, “हालांकि मैं सामाजिक और वैधानिक रूपसे अर्जुन की पत्नी ही बनी रहूंगी पर आज से मेरे पति अर्जुन की शाक्षी में मेरे शरीर पर मुझे भोगने का पूरा अधिकार मैं तुम्हें देती हूँ।”
इन वचनों के आदान प्रदान बाद जब आरती और रमेश गन्धर्व विवाह के बंधन में बंध चुके थे तब अब रमेश को धीरे धीरे आरती को रति क्रीड़ा माने चुदाई के लिए तैयार करना था।
इस प्रक्रिया के अनुसार सबसे पहले रमेश को आरती के पाँव चूमने थे। विधि विधान के निर्देश के अनुसार रमेश ने झुक कर आरती के पाँव ढकी हुई साड़ी को आरती के घुटने से थोड़ा निचे तक उठाया और झुक कर अपनी जीभ बाहर निकाल कर आरती के पाँव की पिण्डियों को चाटा और चूमा।