हादसा-10 (Haadsa-10)

पिछला भाग पढ़े:- हादसा-9

दोस्तों इस अन्तर्वासना हिंदी सेक्स कहानी के पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि मैं पंडित जी को घर दिखाने लेके गई, और मैंने उनके लंड को खड़ा हुआ देखा। फिर उनके लंड को शांत करने के लिए मैंने उनका लंड चूसा, और उसका सारा रस अपने मुंह में ले लिया। अब आगे की कहानी-

उनका रस बहुत गरम था और दूध के समान सफेद था। उसका स्वाद बहुत अच्छा था। मैंने आज तक इतना स्वादिष्ट वीर्य नहीं पिया था। मैंने उनका सारा वीर्य निगल लिया, एक बूंद भी नहीं गिरने दी।

मैं: वाह पंडित जी, आपका प्रसाद तो बहुत स्वादिष्ट है, और आप प्रसाद भी बहुत सारा देते हो।

पंडित जी समझ गए कि मैं किस प्रसाद की बात कर रही थी।

पंडित जी (शर्माते हुए): ध… धन्यवाद बेटी।

मैं: आपने आखरी बार हस्तमैथुन कब किया था?

पंडित जी: बहुत साल हो गए, लगभग सात साल हो गए।

मैं: बाप रे! सात साल! इतने साल तक आपने कुछ नहीं किया?

पंडीत जी: हां। मेरे मन में वैसे कुछ भावना आई ही नहीं।

मैं: लेकिन आप इतनी जल्दी क्यों झड़ गए? मुझे लंड चूसने का मजा भी नहीं मिला।

पंडित जी: ये मेरा पहली बार था।

मैंने देखा कि पंडित जी का लंड अब तक बैठा नहीं था। बल्कि अब भी उतना ही खड़ा था जितना पहले था।

मैं: आपका लंड अब भी नहीं बैठा?

पंडित जी: नहीं वो आसानी से नहीं बैठता है।

मैं: शायद आपके लंड को पूरा निचोड़ना होगा, और सारा वीर्य बाहर निकालना पड़ेगा।

मैंने अब ठान ली थी कि मैं अब पंडित जी का लंड शांत करके ही मानूंगी। मैंने अपने कपड़े जल्दी से उतर दिये, और सिर्फ पैंटी में खड़ी थी।

पंडित जी: बेटा अपने कपड़े क्यूं उतर रही हो?

मैं: आप चलिये मेरे साथ।

मैंने पंडित जी का हाथ पकड़ा, और नंगे बदन ही उन्हें टेरेस के नीचे वाले कमरे में ले गई।

मैं: आप अपने भी कपड़े उतार दीजिये।

पंडित जी: नहीं-नहीं… बेटी।

मैं: आप मेरी बात मानो पंडित जी।

पंडित जी ने अपना थैला बाजू में रखा, और अपने कपड़े उतार दिये। अब हम दोनों एक-दम नंगे थे।

उस कमरे में एक छोटा सोफा रखा था। मैंने पंडित जी को सोफे पर लिटा दिया, और तेल की बॉटल जो कि कमरे में पहले से ही थी, उसे लेकर आ गई, और पंडित जी के लंड को बहुत सारा तेल लगा दिया।

अब खेल शुरु हुआ। मैंने पंडित जी के लंड को हिलाना शुरु कर दिया, और साथ ही साथ मुंह में लेकर चूसना शुरु कर दिया। लंड चूसने की आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी। मैं पूरे जोश में लंड चूसे जा रही थी, और फिर दस मिनट बाद उनका लंड मेरे मुंह में फिरसे झड़ने लगा।

हैरानी की बात यह थी कि पंडित जी ने अब भी बहुत सारा वीर्य मेरे मुंह में छोड़ दिया, पहले जैसा ही गाढ़ा, सफेद और स्वाद में भी उतना ही बढ़िया। पंडित जी को बहुत ही अच्छा महसूस हुआ। मुझे लगा कि अब खेल खतम हो गया था, लेकिन नहीं। कुछ मिनट बाद ही उनका लंड फिरसे खड़ा हो गया। मैं ये देख कर बहुत हैरान थी।

मैं: अरे बाप रे! अपका लंड फिर खड़ा हो गया।

पंडीत जी: हां… सात साल की पूरी कसर आज निकालनी है।

पंडित जी अब थोड़े खुल चुके थे, और मेरे साथ बिना शर्माए बात कर रहे थे, और मुझे भी बहुत अछा लग रहा था। पंडित जी मेरे मुंह में अपना लंड डालने ही वाले थे कि मैंने उन्हें रोक दिया।

पंडित जी: क्या हुआ बेटी?

मैं: इस बार सिर्फ मुंह में नहीं लूंगी।

पंडित जी: फिर?

मैंने उनका लंड मेरे मम्मों के बीच में रखा, और उसे ऊपर-नीचे करने लगी। पंडित जी अब मानो सातवें आसमान पर थे। वो अपने आप अपनी कमर हिला कर मेरे मम्मों के बीच लंड रख कर चोदने लगे। 15 मिनट बाद उनका लंड फिर पानी छोड़ने वाला था।

पंड़ीत जी: बेटी मेरा फिर निकलने वाला है। कहां छोडूं?

मैं: जहां आपका मन करें।

पंडित जी ने अपना सारा पानी मेरे चेहरे पर और मेरे मम्मों पर छोड़ दिया। मेरा चेहरा और मेरे बूब्स उनके वीर्य से कवर थे।

मैं (हस्ते हुए): अरे वाह, अपका वीर्य तो कम होने का नाम ही नहीं लेता। अब भी उतना ही वीर्य छोड़ा आपने। मेरे चेहरे और बूब्स को पूरा भिगो दिया।

पंडित जी शर्मा गए। मुझे लगा कि पंडित जी के लंड में अब भी बहुत दम बचा था। तो मैंने उनके लंड को पकड़ कर हिलाना शुरु कर दिया।

पंडित: ये क्या कर रही हो बेटा… बस हो‌ गया।

मैं: आप चुप रहिये, मैं जानती हूं आपके लंड में अब भी दम है। और ये बेटी-बेटी क्या लगा रखा है? दिव्या नाम है मेरा।

कुछ देर में मुझे जो लग रहा था वहीं हुआ। उनका लंड फिर खड़ा हो गया।

मैं: पहली बर ऐसा मर्द देखा है जिसका लंड तीन बार लगातार झड़ने के बाद भी खड़ा रहता है।

पंडित जी: शुक्रिया दिव्या बेटी।

मैंने उन्हें सोफे पर से उठाया, और खुद सोफे पर लेट गई।

मैं: देख क्या रहे है, आप आईये और मेरा मुंह चोदिये।

बस कहने की देरी थी। पंडित जी जल्दी से अपना लंड मेरे मुंह में डाल कर मेरा मुंह दना-दन चोदने लगे। वो इतने जोर-जोर से मेरा मुंह चोद रहे थे कि मुझे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। ऐसे ही मेरा मुंह चोदते-चोदते वो झड़ गए। उन्होने अपना लंड मेरे मुंह में ही जमाए रखा जिसके कारन मुझे उनका वीर्य फिरसे पीना पड़ा। पंडित जी ने मुझे सांस लेने का भी मौका नहीं दिया, और मेरा मुंह फिर चोदना शुरु कर दिया।

हमारा ये खेल पूरे एक घंटे तक चला। पंडित जी लगातार 7 बार मेरे मुंह में झड़ गए। आखिरकार पंडित जी का लंड शांत हो गया।

मैं सोफे से उठ गई, और अपना चेहरा आईने में देखा। मेरे पूरे चेहरे पर वीर्य लगा हुआ था, और मेरे बाल पूरे बिखरे हुए थे। ना-जाने क्यों मुझे मेरा यह रुप देख कर बहुत अच्छा लगा। मुझे ऐसा लग रहा था कि मानों मैं कोई रंडी हूं।

उस कमरे में एक बाथरूम था, तोह मैं उसके अंदर अपना मुंह धोने के लिए जाने ही वाली थी कि राजेश्वर जी ने नीचे से आवाज दी “दिव्या! अरे कहां रह गई हो तुम?”

इसके बाद की कहानी अगले भाग में।