पड़ोसन बनी दुल्हन-49

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    चोदते हुए वह माया की निप्पलोँ को मुंह में रख कर उसे चूसना और काटना भी नहीं चूकते। धीरे धीरे जैसे जैसे माया को चुदाई का दर्द कम महसूस होने लगा वैसे वैसे माया भी जेठजी को अपनी कमर के साथ अपनी चूत ऊपर की और उछाल कर उनकी चुदाइ की लय में लय मिलाती हुई जेठजी का लण्ड और अंदर घुसाने में जेठजी की सहायता करती।

    माया की तगड़ी चुदाई करते हुए जेठजी के कमरे में उनकी जाँघों के माया की जाँघों से होते टकराव से पैदा होती “फच्च…. फच्च…. ” की कामुक उत्तेजक आवाज से कमरा गूंज रहा था। चुदाई के दरम्यान माया अपनी टांगें कभी जेठजी के कंधे पर तो कभी जेठजी की दोनों बगल के अंदर हवा में अद्धर उठाती हुई जेठजी से खूब प्यार से चुदवाने लगी थी। जेठजी ने जब एक तगड़ा धक्का मार कर अपना आधा लण्ड माया की चूत में घुसेड़ा था उसी समय माया झड़ गयी थी।

    जेठजी का लण्ड माया की चूत में सिर्फ दर्द नहीं एक बड़ा ही उन्मादक सा पागलपन पैदा कर रहा था। माया की चूत में उस घुसे हुए लण्ड के अंदर बाहर होने से हो रहे घर्षण के कारण अजीब सी फड़फड़ाहट हो रही थी जिसे जेठजी अपने लण्ड के ऊपर हो रहे खिंचाव एवं चूत में बार बार हो रही कम्पन से महसूस कर रहे थे। इस चुदाई ने माया को इतना पागल कर दिया था की जेठजी के लण्ड के एक या दो धक्कों में ही माया का छूट जाता था और माया झड़ती रहती थी।

    चुदवाते हुए माया हमेशा जेठजी के चेहरे को बार बार देखती रहती थी की उस चुदाई से जेठजी को सुख मिल रहा है की नहीं। जेठजी की भौंहों के उतार चढ़ाव से माया समझ जाती थी की जेठजी माया को चोदने में अनूठा आनंद महसूस कर रहे थे और माया को चोदते हुए उनका सारा ध्यान अपने लण्ड में हो रहे उत्तेजक घमासान पर ही रहता था।

    लम्बे अर्से से ब्रह्मचर्य का पालन करने के कारण जेठजी का वीर्य जेठजी के लण्ड की इस तरह की चुदाई से उत्पन्न अति सुख मिलने के कारण अण्डकोष से बाहर निकलने के लिए व्याकुल हो रहा था।

    जब माया ने जेठजी के साथ ताल से ताल मिला कर अपनी कमर उछाल कर चुदवाना शुरू किया तब जेठजी अपने वीर्यचाप को रोकने में अपने आपको असमर्थ महसूस करने लगे। जेठजी के चेहरे पर बल पड़ने से माया समझ गयी की जेठजी झड़ने वाले हैं।

    शायद वह यही उलझन में होंगे की क्या वह अपना वीर्य माया की चूत में उँडेले या नहीं। माया जेठजी के वीर्य को अपनी चूत में लेना चाहती थी। वह जानती थी की जेठजी का वीर्य उसे गर्भवती कर सकता था।

    माया ने बिना कुछ सोचे समझे जेठजी को कहा, “अजी आप भर दीजिये मेरी चूत को आपके वीर्य से। वैसे तो मेरा इस समय बीज फलीभूत होने का वक्त नहीं है। पर फिर भी अगर मेरा गर्भ रह गया और यदि आपको एतराज ना हो तो मैं आपके बालक को जनम देना चाहती हूँ। मैं आपके बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ। फिर भी अगर आपको एतराज होगा तो मैं कल सुबह ही गोली खा लुंगी ताकि गर्भ ना रुके। आप जैसा कहोगे मैं करुँगी पर प्लीज आप अपना वीर्य मेरी चूत में ही जाने दें।”

    यह सुनते ही जेठजी ने अपने वीर्य को माया की चूत भरने के लिए खुली छूट दे दी। जेठजी के मन के इशारे से ही एक फव्वारे के सामान जेठजी का गर्मागर्म गाढ़ा वीर्य जेठजी के लण्ड के छिद्र से निकलता हुआ एक पिचकारी की तरह माया की चूत की सुरंगों को भरने लगा। माया ने अपनीं चूत की नाली में जेठजी के गरम वीर्य को भारत हुए महसूस किया और वह एक अजीब से रोमांच से काँप उठी। उस रात उसका जीवन सार्थक हो गया था।

    जिस मर्द को वह अपने प्राण तक देना चाहती थी वह माया के बदन के सुख को पाकर इतना रोमांच भरा सुख पा सका उसके कारण माया को अपना जीवन सार्थक हो गया था ऐसा महसूस हुआ।

    उस चुदाई के बाद हालांकि माया की चूत जेठजी के लण्ड की तगड़ी चुदाई से काफी लाल हो गयी थी और दर्द कर रही थी, पर माया को उस रात जेठजी को पूरी तरह संतुष्ट करना था।

    थकी हुई माया जेठजी के लण्ड निकालने के चंद मिनटों में ही जेठजी की बगल में आ कर जेठजी को अपने पीछे रख कर जेठजी की बाँहों में और उनकी टांगों के बिच में फंस कर सो गयी। जेठजी का ढीला लंड बार बार माया की गाँड़ के गालों से रगड़ता रहता था। जेठजी भी अपने दोनों हाथों में माया की चूँचियाँ दबाते हुए कुछ ही मिनटों में सो गए।

    करीब आधे घंटे बाद माया ने महसूस किया की जेठजी का लण्ड फिर से सख्त होने लगा था और माया की गाँड़ के गालों को टोंचने लगा था। माया इस डर से की कहीं जेठजी माया की गोरी चिट्टी भरी हुई गाँड़ देख कर ललचा ना जाए और गाँड़ मारने की इच्छा ना प्रगट कर दे, एकदम पलट कर जेठजी की तरफ अपना मुंह करने के लिए करवट बदल ली।

    जेठजी जाग चुके थे। माया ने अपना डर ना जाहिर करते हुए जेठजी के होँठों से अपने होँठों को चिपका दिए और जेठजी के मुंह में अपनी जीभ डाल कर माया जेठजी की लार चूसने लगी। जेठजी भी माया की जीभ और होंठों के साथ अपने मुंह और जीभ से खेलते हुए माया के साथ प्रगाढ़ चुम्बन में जुट गए।

    कुछ देर तक माया को चूमने के बाद जेठजी ने माया को अपनी बाँहों में जकड़ा और अपने सख्त लण्ड को माया की चूत में घुसाने का खेल करने लगे। जेठजी इतने लम्बे और हट्टेकट्टे और बेचारी माया दुबली पतली और जेठजी के मुकाबले छोटी सी। जेठजी उस पोजीशन में माया की चूत में अपना लण्ड कैसे डाल पाते?

    जेठजी ने माया को पूछा, “तुम थक तो नहीं गयी?”

    माया ने जेठजी की आँखों में आँखें मिला कर पूछा, “और भी एक राउण्ड करना है क्या?”

    जेठजी ने कहा, “अगर तुम तैयार हो तो।”

    माया ने जेठजी के लण्ड को पकड़ कर बैठ कर उसे चूमते हुए कहा, “अगर मेरा यह दोस्त तैयार है तो उसकी दोस्त भी तैयार है।” माया ने अपनी चूत की और इशारा करते हुए कहा।

    माया ने झुक कर जेठजी का लण्ड हाथ में पकड़ा और झुक कर उसे अपने मुंह में डाला। जेठजी की और देख कर माया बोली, “मैं इसे और तैयार कर देती हूँ।” यह कह कर माया ने जेठजी का लण्ड चूसना शुरू किया।

    उस रात अगले एक घण्टे से ज्यादा समय तक माया जेठजी से चुदवाती रही। जेठजी ने माया को ऊपर चढ़ कर चोदा, साइड में रख कर चोदा, माया को आसानी से अपनी बाँहों में उठाकर अपनी कमर पर टिका कर चोदा, माया को घोड़ी बना कर चोदा, माया को पलंग पर औंधे मुंह सुला कर ऊपर चढ़ कर चोदा और और भी कई अलग अलग तरीकों से माया को अच्छी तरह से जेठजी ने उस रात चोदा।

    माया ने भी जेठजी के ऊपर चढ़ कर उनका लण्ड अपनी चूत में लेकर ऊपर से जेठजी को खूब कूद कूद कर चोदा। माया ने कभी अपनी जिंदगी में ऐसी चुदाई कराई तो नहीं थी, पर ऐसा सोचा भी नहीं था की उसकी ऐसी चुदाई बह कभी होगी। माया के जबरदस्त मानसिक निश्चय के बावजूद भी जब उस रात माया को जेठजी ने चुदाई से फारिग किया और माया जब सीढ़ियों से उतर कर निचे आ रही थी तो सिर्फ माया की चूत ही नहीं सूज गयी थी, माया ठीक से चल भी नहीं पा रही थी।

    यह सारी बातें माया ने मुझे बतायीं और तब मैंने माया को अपने गले लगा कर कहा, “माया तू आजसे मेरे लिए माया नहीं, मेरी जेठानी है। भले ही तू मुझे अपनी दीदी कहे, पर तूने आज जो काम किया है उससे तूने हम सब को तुम्हारा ऋणी बना दिया है। तुम्हारे इस ऋण का बदला हम चुका नहीं सकते।”

    माया ने जब यह सूना तो उसकी आंखों में मेरी बात सुन कर आंसू छलक आये।

    मेरा हाथ थाम कर वह बोली, “दीदी, मैंने कुछ नहीं किया। मैं तो खुद ही आप सब के एहसानों के बोझ के तले दबी हुई हूँ। आपने मुझे अपने घर में सहारा दे कर अनाथ से सनाथ बनाया। बल्कि आज आपने मुझे विधवा से सधवा बनाया। मैं आपकी जेठानी बनूँगी या नहीं, यह तो मैं नहीं जानती, पर आज आपने मुझे आपके जेठजी से चुदवा कर उनकी पत्नी ना भी बन पाऊं तो उनकी रखैल कहलाने का सम्मान तो दिला ही दिया है। आपके जेठजी की रखैल बनना भी मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।”

    माया की बात सुन कर नतमस्तक होती हुई मैं कुछ ना बोल सकी। माया की उस विनम्रता के आगे अपनी आंसू भरी आँखों के साथ माया को अपने गले लगा कर मैंने अपना प्यार जताया।

    मैंने जब मेरे पति संजयजी से यह सारी बातें कहीं तो उन्हें सुन कर मेरे पति इतने खुश हुए और उन्होंने आंसूं भरी आँखों के साथ मुझे गले लगा कर इतना प्यार किया की मैं बता नहीं सकती।

    उसी सुबह उन्होंने अपने माता पिता (मेरे सांस ससुर) से बात कर माया और बड़े भैया का विवाह तय किया और जल्द ही उनकी शादी भी हो गयी। इस तरह माया ना सिर्फ हमारे घर की एक अग्रगण्य सदस्य हो गयी वह मेरी छोटी बहन से मेरी जेठानी बन गयी।

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