This story is part of the अगर मुझसे मोहब्बत है series
अगर मुझसे मोहब्बत है, मुझे सब अपने ग़म दे दो,
इन आँखों का हर इक आंसू मुझे मेरी कसम दे दो
तुम्हारे ग़म को अपना ग़म बना लूं तो क़रार आये
तुम्हारा दर्द सीने में छुपा लूँ तो क़रार आये
वोह हर शह जो तुम्हे दुःख दे मुझे मेरे सनम दे दो,
अगर मुझसे मोहब्बत है मुझे सब अपने ग़म दे दो।
शरीक-ए-ज़िन्दगी को क्यूँ शरीक-ए-ग़म नहीं करते
दुखों को बाँट कर क्यूँ इन दुखों को कम नहीं करते
तड़प इस दिल की थोड़ी सी मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे मोहब्बत है, मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर इक आंसू मुझे मेरी कसम दे दो
अगर मुझसे मोहब्बत है………………
सच्चे प्यार में नफरत और घृणा का कोई स्थान नहीं होता। हालांकि प्यार और नफरत एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। जिससे हम बड़ा ही उत्कट प्यार करते हैं, उनसे हमें जब प्यार में ठुकराया जाता है तो या तो हम अपने आप से नफरत करने लगते हैं, और कुछ आवेश में हमारी घटिया सोच से प्रभावित होकर कई बार अपने अमूल्य जीवन को दाँव पर लगा देते हैं। या फिर नफरत के मारे उसी क्षणिक आवेश में आ कर हम जिसे प्यार करते हैं उसे हानि पहुँचाने के बारे में सोचते हैं।
उन्नीस सौ साठ के दशक में एक गाना बहुत सुप्रसिद्ध हुआ था। उस गाने के बोल थे “अगर मुझसे मोहब्बत है, मुझे सब अपने ग़म दे दो, इन आँखों का हरेक आंसू मुझे मेरे सनम दे दो।” इस गाने को राजा मेहंदी अली खान साहब ने लिखा था, और सुरों में खूबसूरती से सजाया था श्री मदन मोहन जी ने।
इसे बड़ी ही सुरीली आवाज में लता मंगेशकर जी ने गाया था। पाठकों से अनुरोध है कि इस गाने को अगर आपने ना सुना हो, तो जरूर सुनें। इस गाने में प्यार करने का एक अद्भुत फलसफा बताया गया है, जिसे हमें और आपको और पूरे समाज को समझना चाहिए। जिससे समाज में प्यार फैले, नफरत नहीं।
इस कहानी का सिद्धांत तत्व भी इसी गाने पर आधारित है। इस कहानी को पोर्न मत समझिये। यह जीवन की सच्चाई है, और यह फलसफा प्यार को बढ़ाता है नफरत को नहीं। प्यार ही मोहब्बत पा सकता है। नफरत सिर्फ नफरत और दुःख को ही जन्म देती है।
इस कहानी में एक पहेली जो अक्सर हमें उलझा देती है उसका भी विवरण किया गया है। शादी की परंपरा जो हमारे सारे समाज में कई सदियों से चलती आयी है, उसे एक सवाल पहले से लेकर अब तक परेशान कर रहा है। और वह है, “अंदरूनी ही या बाहरी भी?”
इसे इंग्लिश में अनुवाद करने से शायद बेहतर समझ आये। सवाल है “Exclusive only or Inclusive also?”
तात्पर्य है, जैसा की हम जानते हैं, पुरुष और स्त्री के वैवाहिक सम्बन्ध में पुरुष और स्त्री के बीच होता मैथुन या सम्भोग एक मुख्य कारण है। क्या इस सम्भोग या मैथुन की प्रक्रिया में किसी भी रूप में बाहरी पुरुष अथवा स्त्री का औचित्य स्वीकार्य है? यह प्रश्न सदियों से शादी के रिवाज को चुनौती देता आया है या दे रहा हो ऐसा लगता है। इस कहानी में मैंने अपने पात्रों के द्वारा इस जटिल प्रश्न का सरल उत्तर ढूंढने की कोशिश की है।
इस कहानी का मुख्य पात्र सूरज मेरी कहानियों का एक ख़ास प्रशंसक है। उससे मेरा इलेक्ट्रॉनिक संदेशों का काफी आदान-प्रदान का परिणाम यह कहानी है। मैंने उन बोरिंग संदेशों को कहानी में प्रवेश नहीं दिया। बस रसिकता भरे प्रसंगों से ही कहानी को सजाने की कोशिश की है। उम्मीद है पाठकों को पसंद आएगी।
मुझे नहीं पता वह सब कैसे हो गया। पर हाँ यह सच है, कि वह हो गया जो कभी सोचा भी नहीं था। अब जब सोचता हूँ तो लगता है जैसे वह सब सपना था। पर मैं आज जब उस घटना का प्रभाव मेरे और मेरी बीवी रीता पर देखता हूँ, और हमारी इस समय की मानसिकता को पहले की हमारी मानसिकता से तुलना करता हूँ, तो लगता है की वह सच ही था।
मेरा नाम राजकुमार है। मुझे सब राज कह कर बुलाते हैं। अब मेरे और मेरी बीवी रीता के बीच सेक्स के बारे में पहले जैसे अंतर मतभेद नहीं है। शादी के बाद कुछ समय तक सिर्फ मैं ही सेक्स के बारे में खुली सोच रखता था। अब रीता भी समझने लगी है कि सेक्स भी जिंदगी का एक अहम् हिस्सा है। पर वह जिंदगी का सिर्फ एक अहम् हिस्सा ही है। वह जिंदगी नहीं है।
यह उस समय की बात है जब हमारी शादी को करीब तीन साल हो चुके थे। हमने तय किया था कि शादी के पांच साल तक हम दोनों हमारी फॅमिली आगे नहीं बढ़ाएंगे। मतलब बच्चा नहीं पैदा करेंगे और अपने-अपने व्यवसाय पर ध्यान दे कर कुछ धनराशि इकट्ठी करके बाद में परिवार बढ़ाएंगे।
रीता मध्यम वर्ग के परिवार से पली हुई उसी संस्कृति में ढली एक घरेलु लड़की थी। माँ बाप की आय ठीक ठाक ही थी, जिसके कारण रीता की अच्छी पढ़ाई हुई। रीता को सजने सँवरने का बड़ा ही शौंक था। वह थी भी कमाल की सुन्दर। शायद उस समय उनके स्कूल, कॉलेज और शायद पूरे शहर में रीता जितनी खूबसूरत लड़की नहीं होगी।
इतना सुन्दर गोल गोरा चेहरा कि देखने वाले की नजर ही ना हटे। रीता के चेहरे की खासियत यह थी, कि उसके चेहरे पर कहीं भी कोई दाग़ या तिल या ऐसा कुछ नहीं था, जो चेहरे की उज्ज्वलता को दूषित कर सके। चेहरे के सारे नाक-नक्श एक-दम सम्पूर्ण रूप से परिपूर्ण थे।
रीता की आँखों की तीखी भरी हुई और तेज नुकीली भौंहे, नीली नशीली आँखें, सुन्दर भँवराले लम्बे कूल्हे तक लटकते हुए बाल, तीर कमान से होंठ, मोहक नासिका, अत्यंत सुन्दर चिबुक, लम्बी आकर्षक गर्दन, नाभि के नीचे साड़ी पहने हुए पतली कमर जो वह अक्सर खुला ही छोड़ देती थी।
उससे कहीं आगे फूल कर निकलते मादक मस्त भरे और उभरे हुए स्तन मंडल, जो उसके ब्लाउज और ब्रा के बंधनों को नहीं मानते थे। बखूबी सुन्दर उभरे हुए आकर्षक कूल्हे, और इतनी करारी और सुडौल कमल की डंडी के समान जाँघें, कि अगर वह जाँघें दिख जाएँ तो इंसान उन जाँघों के ऊपर ही ना देख पाए।
इन सबसे ज्यादा नशीली थी रीता की एक तीखी कटार सी नजरें। इतने मीठे मधुर बोल कि मन करता था सुनते ही रहें और रीता की हिरणी सी चाल। जब रीता चलती थी तो सब रुक जाते थे। चलती हुई रीता की कमर का चटकना, उसके कूल्हों का मटकना और उसके स्तनोँ का ऊपर नीचे झटकना; कुल मिला कर रीता की सुंदरता को मात्र सुन्दर नहीं, अवर्णनीय अथवा अतुलनीय सुन्दरता की श्रेणी में रख देते थे।
रीता अपने कॉलेज में ना सिर्फ अलग-अलग स्टाइल के भारतीय नृत्य कला के लिए सुप्रसिद्ध थी, वह हिंदी फ़िल्मी और पाश्चात्य संगीत नृत्य में भी निष्णात थी। रीता की माँ को नृत्य कला में काफी दिलचशस्पी थी, जिसके कारण बचपन से ही रीता के संस्कारों में नृत्य कला के लिए रस था।
बचपन से ही उनके शहर के नृत्य के उस्तादों से प्रशिक्षण पाने के कारण रीता बहुत कम उम्र से ही नृत्य कला में पारंगत होने लगी थी। रीता स्कूल में एक प्रखर नृत्यकार यानी डांसर थी, और उसे स्कूल और कॉलेज में कई प्रशंशा-पत्र, मेडल्स और तोहफे मिले थे। उत्तर भारत के एक बड़े ही प्रखर नृत्यकार गुरु महाराज से रीता ने शिक्षा प्राप्त की थी।
हालांकि रीता शायद मौक़ा मिलने पर शोहरत और पैसे कमा सकती थी। पर रीता के पिता रीता के नृत्य कला को व्यवसाय बनाने के पक्षधर नहीं थे। रीता की अद्भुत सुंदरता देख मैंने रीता से शादी के लिए हाँ कहने में कोई समय नहीं गंवाया। पर रीता ने तपाक से “हाँ” नहीं कहा।
जब मैं रीता से मिला और मैंने शादी के लिए हमारे माँ बाप को “हाँ” कही, तो रीता का मुझसे पहला सवाल था-
रीता: आपने हाँ कह दी, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि मैं भी हाँ कह दूँगी? मैं इतनी आसानी से नहीं हाँ कहने वाली। अगर मुझे वाकई में पाना है, तो मशक्क्त करनी पड़ेगी।
यह कह कर रीता ने अपने माँ बाप से कहा कि उसे सोचने का कुछ वक्त चाहिए। पर मैं रीता से शादी करने के लिए कटिबद्ध था। मैंने भी तय कर लिया था, कि शादी करूंगा तो रीता से ही। उसके बाद की कहानी लम्बी है, जिसमें मैं रीता के पीछे करीब एक साल तक लगा रहा।
मैं उसे कॉलेज ले जाता, कभी घर छोड़ता, कभी उनके घर के छोटे-मोटे काम कर देता। यह सब करते-करते मैंने रीता के माँ बाप और बड़े बुजुर्गों सहित रीता की भी रजामंदी हासिल कर ही ली।
फिर आखिर में मेरी एक साल की कड़ी मेहनत और तपस्या के बाद हमारी शादी हो ही गयी। शादी की पहली रात भी रीता ने चुदवाने के पहले मुझसे बड़ी मिन्नतें करवायीं, और वादे करवाए, तब कहीं जा कर आखिर में अपनी साड़ी का पल्लू खोला, और अपने खूबसूरत नंगे बदन के दर्शन करवाए और उसे छूने दिया।
रीता की सबसे बड़ी और मेरी सबसे ज्यादा मनपसंद सुंदरता का प्रतीक था रीता के शरीर का एक-एक अंग का परफेक्शन। जैसे रीता के स्तन खड़े रहने पर या लेटे रहने पर भी झूल नहीं जाते थे। जैसे अक्सर और स्त्रियों के होते हैं।
रीता की निप्प्लें भी परफेक्शन का नमूना सी थीं। हलकी सी चॉकलेट रंग की दोनों निप्पलेँ जिसको हम गोरे रंग की और हलके से गेहूँ वर्ण के रंग की कह सकतें हैं, वह उत्तेजित अवस्था में कोई सुन्दर मंदिर के अर्ध-गोलाकार गुंबद सामान परफेक्ट एरोला के बीचो-बीच शिखर के रूप में अकड़ फूली हुईं सख्त स्थिति में रहतीं थीं।
रीता के चेहरे, पेट, कूल्हे या चूत के ऊपरी उभार इत्यादि पर मैंने कभी कोई बल नहीं देखे। अक्सर हमारे गालों में आँखों के निचे या कपोल पर पच्चीस साल की उम्र के बाद झुर्रियां या चमड़ी का लटक कर उभर जाना नजर आने लगता है। रीता की उम्र से उनमें कोई फर्क नहीं पड़ा।
मैं मानता हूँ कि इसका कारण शायद भगवत कृपा और मन को हमेशा शांत, आनंदी रखना और बदन को नृत्य आदि व्यायाम कर फिट रखने के लिए सदैव सजग रहना ही था।
अपने स्कूल और कॉलेज में मेरी पत्नी काफी संयम-पूर्ण और आदर्श कन्या के रूप में जानी जाती रही थी।
हालांकि कई लड़कों ने रीता पर लाइन मारने की नाकाम कोशिश कई बार की थी। कई लड़के रीता के पीछे ऐसे पड़ गए थे, कि रीता को उन्हें दुत्कार कर भगा देना पड़ता था।
रीता का “अरंगेत्रम” (शिक्षा पाने के बाद स्टेज पर पहला डांस परफॉरमेंस) मुंबई के सन्मुन्खानंद हॉल में हुआ था।
उसका लाइव वीडियो मुझे रीता के पिता ने दिखाया था। हालांकि शादी के बाद भी रीता कहीं-कहीं डांस परफॉरमेंस देती रहती थी। पर घर की जिम्मेदारियां रीता पर हावी हो रहीं थीं। शादी के बाद मैंने हमारे घर में रीता के डांस करते हुए कुछ वीडियो रिकॉर्ड किये थे, जिनमें एक था जिसमें मैंने रीता को काफी पतले पारदर्शी कपडे पहना कर डांस करने पर मजबूर किया था।
उस वीडियो में कहीं श-कहीं रीता का घाघरा हवा में उड़ता दिख रहा था, और तब उसकी चूत तक की नंगी करारी जांघें साफ़-साफ़ दिखती थीं। उसी वीडियो में एक बार रीता का ब्लाउज और ब्रा खिसकने से कुछ पलों के लिए रीता के स्तनों और निप्पलेँ भी बाहर निकल आयीं थीं।
जब रीता ने वह वीडियो देखा, तो वह रिकॉर्डिंग के बाद मुझसे उस वीडियो को डिलीट ना करने के लिए काफी नाराज हुई थी। पर बाद में रोमांटिक मूड में कभी कभी हम वह वीडियो देख कर मजे लेते थे।
रीता की तमन्ना थी एक बड़ी नृत्यकार बनने की। परन्तु माँ बाप, हालांकि वो रीता की कला के कायल थे, पर वह जानते थे कि कला की दुनिया में एक औरत के लिए अपने कैरियर को आगे बढ़ाना कितनी दुष्कर चुनौती थी और उससे निपटना आसान नहीं था। उस कारण रीता की अद्भुत कला होने के बावजूद भी वह ज्यादा आगे बढ़ नहीं पायी। पर इस बात का अफ़सोस रीता के जहन में जरूर था।
आगे की कहानी अगले भाग में।