This story is part of the Padosan bani dulhan series
भाभी के ब्लाउज और ब्रा के खुलते ही भाभी के मस्त स्तन ब्रा के बंधन से छूट कर आझाद हो कर भाभी की छाती पर फूली हुई निप्पलों और एरोला के आसपास बिना झुके सख्ती से खड़े हुए नजर आये। भाभी के स्तन मेरे स्तनोँ से कुछ छोटे जरूर थे पर वैसे ही सख्त और गोल थे।
सेठी साहब ने भाभी के स्तन खुलते ही उन्हें अपनी हथेलियों में ले कर उन्हें मसलने लगे। भाभी के स्तनोँ में एक खासियत थी। वह बिना झुके अपनी गोलाई बनाये हुए थे। मैंने भाभी का एक स्तन अपनी हथेली में लिया और मैं उसे सहलाने लगी। भाभी के स्तन इतने सपाट, चिकने और कोमल थे की उनको एक बार पकड़ लया तो छोड़ने का मन ही ना करे। मैं और सेठी साहब भाभी का एक एक स्तन अपनी हथेली में लिए उसे सेहलाने लगे।
भाभी भी समझ गयी थी की अब शर्माने से कोई फायदा नहीं। उन्होंने अपना एक हाथ सेठी साहब की जाँघों के बिच में डाल दिया और सेठी साहब का लण्ड पाजामे के ऊपर से ही सहलाने लगी।
यह सेठी साहब को एक इशारा था की वह अपना लण्ड पाजामे से निकाल कर प्रदर्शित करे। सेठी साहब का एक हाथ अंजू भाभी की गाँड़ को कपड़ों के ऊपर से सेहला रहा था। मैं जानती थी की अंजू भाभी सेठी साहब का लण्ड देखने के लिए व्याकुल थी। मैंने पहले ही सेठी साहब के लण्ड के बारे में भाभी को वाकिफ कर दिया था।
सेठी साहब के उसकी गाँड़ सहलाने से अंजू भाभी फुदक रही थी। पलंग पर वह धीमी सी सिसकारियां निकाले इधर उधर मचल रही थी। शायद सेठी साहब कपड़ों के ऊपर से ही अंजू भाभी की गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डालने की कोशिश कर रहे थे।
भाभी की गोल सुआकार मांसल गाँड़ किसी मर्द को आसांनी से आकर्षित करने वाली थी।
मैंने भाभी की नाइटी उठा कर ऊपर की और खिसका दी। भाभी ने अपने हाथ ऊपर कर उसको भी कोने में फेंक दिया। अब भाभी सिर्फ पैंटी में ही थी। सेठी साहब के लिए भाभी की गाँड़ सहलाना अब और भी आसान हो गया था। अब तो सेठी साहब को अंजू भाभी की पैंटी के अंदर हाथ डालकर अंजू की माँसल गाँड़ को सहलाने, पिचकाने और गाँड़ की दरार में उंगली डालने का और भी आसान अवसर मिल गया था।
भाभी ऊपर से पूरी नंगी हो चुकी थी। सिर्फ पैंटी में ही थी। और उस हाल में वह बहुत ही प्यारी खूबसूरत लग रही थी। भाभी की पतली कमर और नाभि के निचे का स्त्री सहज हल्का सा पेट का उभार बड़ा ही कामुक लग रहा था। पैंटी में से जैसे भाभी की कमल की डंडी जैसी जाँघें अद्भुत थीं।
सेठी साहब ने भाभी की गाँड़ के माँसल गालों और बिच वाली दरार से खलते हुए पैंटी को निचे की और खिसकाया। निचे की और खसकते ही भाभी की चूत दिखने लगी।
भाभी की चूत मुझे कुछ अलग सी लगी। भाभी की चूत ज्यादा लम्बी नहीं थी। चूत का छिद्र भी शायद छोटा ही होगा। मुझे एक ख़याल आया की शायद मेरा भाई भाभी को चोदने में कोताही करता होगा। भाभी की चूत इतनी फ्रेश लग रही थी। मैं जानता था की काफी चोदी हुई चूत अक्सर काली और चौड़ी हो जाती है।
मैंने सेठी साहब के पाजामे का नाडा खोल दिया। सेठी साहब ने अंदर एक कच्छा (निक्कर) पहना था। मैंने सेठी साहब की निक्कर हटाने की कोशिश की। सेठी साहब ने खुद पाजामे और निक्कर को पलंग से पाँव नीचा कर दोनों निकाल दिए। सेठी साहब का तगड़ा लण्ड जैसे एक साँप अपनी गुफा में कुंडली में दुबक कर छिपा होता है वैसे ही ढीला लण्ड भी अपने आपको घुमा कर सेठी साहब की निक्कर में दुबक के बैठा हुआ था। शायद वह हम महिलाओं के हाथों और होठोँ के स्पर्श का इंतजार कर रहा था।
सेठी साहब के लण्ड के बाहर निकलते ही बाँवरी मेरी भाभी ने उसे फुर्ती से अपने हाथों में पकड़ने की कोशिश की। सेठी साहब का लण्ड बाहर निकलते हुए सीधा हो कर अपनी साधारण लम्बाई धारण कर रहा था।
शायद मेरी भाभी को सेठी साहब के लण्ड की लम्बाई और चौड़ाई का अंदाज नहीं था। पर अपनी एक हथेली में उसे उठाने की कोशिश की तो लण्ड हथेली से कहीं बड़ा होने के कारण उनकी हथेली से फिसल गया और निचे की और लटक गया। फिर अंजू भाभी ने सेठी साहब के लण्ड को जब ध्यान से देखा तो उनकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। शायद ही उन्होंने अश्लील वीडियो को छोड़ उतना बड़ा लण्ड कभी देखा होगा और उस समय तो वह ढीला शिथिल सा था।
अंजू भाभी ने इस बार दोनों हथेलियों का इस्तेमाल करके सेठी साहब का लण्ड अपने हाथों में लिया। मैंने अंजू भाभी को पहले से ही सेठी साहब के लण्ड के बारे में सांकेतिक भाषा में थोड़ा सा घुमाफिरा कर बताया था की सेठी साहब का लिंग तगड़ा है। कोई साधारण सी घरेलु स्त्री को पहली बार सेठी साहब से चुदवा ने में काफी कष्ट हो सकता है।
मैं इसके अलावा सांकेतिक भाषा में क्या बता सकती थी?
अंजू भाभी ने इस बार दोनों हथेलियों का इस्तेमाल करके सेठी साहब का लण्ड अपने हाथों में लिया। अब भाभी को सेठी साहब का लण्ड प्रत्यक्ष देख कर मेरी बात की सटीकता का अहसास हो रहा होगा।
सेठी साहब का लण्ड देख कर अनायास ही मुझे उसे चूसने का मन करता था। शायद यह उसकी खूबसूरती कहो या विशाल कद कहो इसके कारण होता होगा। हर अनुभवी स्त्री जानती है की लण्ड भी खूब सूरत और बदसूरत हो सकता है। यह बात अनुभव से ही समझी जा सकती है। शायद हर स्त्री का सेठी साहब का लण्ड देख कर उसे चूसने का मन करता होगा।
भाभी से भी अपने आपको रोका नहीं गया। जैसे ही उन्होंने सेठी साहब का लण्ड अपबने हाथों में लिया की वह मेरी और देखने लगी जैसे मेरी इजाजत चाहती थी की वह उसे अपने मुंह में ले।
मैंने अपनी पलकें और सर हिलाकर उसे इजाजत देदी। वैसे इस हाल में उसे अब किसी भी काम के लिए मेरी इजाजत लेने की आवश्यकता नहीं थी। भाभी ने सेठी साहब को लेट जाने का इशारा किया ताकि वह सेठी साहब का लण्ड मुंह में ले सके।
सेठी साहब मुस्कुराते हुए लेट गए। भाभी ने कुछ हिचकिचाहट दिखाते हुए अपना मुंह सेठी साहब के लण्ड पर झुकाया और पहले उसके टोपे को मुंह में लेकर जीभ से अच्छी तरह से चाट कर जैसे उसे साफ़ कर दिया।
सेठी साहब के लण्ड का टोपा भाभी की लार से चमक रहा था। सेठी साहब के लण्ड से रिस रहा पूर्व रस भी भाभी ने चाट लिया होगा। धीरे धीरे भाभी ने अपना मुंह पूरा खोल कर सेठी साहब के लण्ड को जितना अंदर ले सकती थी उतना लिया और अपना मुंह ऊपर निचे कर सेठी साहब को मुंह चुदवाने का अनुभव देना शुरू किया। लगता था भाभी वाकई में इसमें कुछ अनुभवी लग रही थी क्यूंकि भाभी ने सिर्फ अपनी लार ही नहीं अपनी लार की चिकनाहट वाला द्रव्य सेठी साहब के लण्ड पर काफी मात्रा में लपेटा।
शायद भाभी यह सोचती होगी की सेठी साहब से चुदवाने में पहले उनका नंबर भी आ सकता है तो यह चिकनाहट लण्ड को चूत की सुरंग में घुसने में उनकी काफी मदद करेगी। जब भाभी सेठी साहब का लण्ड चूस रही थी तब सेठी साहब मेरे होंठ चूस रहे थे और जैसे वह मेरे मुंह का सारा द्रव्य ही अपने मुंह में ले जाना चाहते हों इस तरह मेरे होंठों को, मेरी जीभ को और मेरे मुंह में से सारी लार को बड़ी सख्ती से चूस रहे थे।
उनके हाथ मेरे स्कर्ट को उठा कर मेरे स्तनोँ को मसल रहे थे। भाभी ने मुझे पहने हुए कपडे सेठी साहब का लण्ड चूसते हुए ही निकाल ने को इंगित किया। मैंने निकाल दिए। जब चुदवाना हो तो कैसे भी सुन्दर कपडे पहनो, क्या फायदा? भाभी का एक हाथ मेरी चूत पर पहुँच गया था और वह अपनी उँगलियों से मेरी चूत की सतह को प्यार से सेहला ने लगी।
मैं भाभी के मस्त स्तनोँ को सेहला औरऔर मसल रही थी। भाभी के स्तनोँ की निप्पलेँ इतनी रोमांचक थी और ऐसी सख्त हो कर फूल जातीं थीं की उनको उँगलियों में पिचकते हुए छोड़ना नामुमकिन था। भाभी के स्तनोँ के एरोला गोरे और फुंसियों से भरे हुए थे जो उनकी उत्तेजना की चुगली खा रही थी। उनको मसल कर मैं उनकी उत्तेजना और बढ़ा रही थी।
भाभी के स्तन ऐसे ही खड़े हुए बिना झुके हुए थे जैसे किसी कँवारी लड़की के होते हैं। हम स्त्रियां तो स्तनोँ को सहलाने से और मसलने से उत्तेजित हो ही जाती हैं पर मुझे तब तक पता नहीं था की मर्द लोग हम स्त्रियों के स्तनोँ को सहलाने और मसलने में इतना आनंद क्यों पाते हैं।
भाभी के स्तनोँ को मसल कर मुझे समझ में आया की स्त्रियों के स्तनोँ में क्या मस्ती और उत्तेजकता का आलम है। इन्हें मसलते ही स्त्रियां फुदक ने लगतीं हैं। मर्द लोग यही चाहते हैं की वह जब अपनी पार्टनर को चोदे तो उनका पार्टनर भी उस चुदाई को खूब एन्जॉय करे। जब स्तनोँ को हम मसलते हैं तो चूत में कुछ अजीब सी झनझनाहट होने लगती है।
सेठी साहब के लण्ड को चूसते हुए भाभी इतनी खो गयी की मुझे लगा की उनका जबड़ा दुखने लगा होगा पर वह दिखा नहीं रही थी। जब भाभी ने अपना मुंह लण्ड से हटाया तब मैं धीरे से मेरा मुंह सेठी साहब के लण्ड के पास ले आयी और भाभी को इशारा किया की वह कुछ देर आराम ले।
उस समय सेठी साहब अपने लण्ड को ऊपर निचे कर भाभी के मुंह की तगड़ी चुदाई कर रहे थे। लगता था सेठी साहब खूब मजे ले रहे थे। मैं सेठी साहब के ऊपर लेट गयी। मेरी चूत सेठी साहब के मुंह के ऊपर और सेठी साहब का लण्ड मेरे मुंह में। इस तरह हम डबल ब्लो जॉब की प्रैक्टिस करने लगे। भाभी यह देख कर हैरान रह गयी। भाभी भी मेरे साथ लेटी हुई थी।
भाभी के बदन पर हाथ फिराते मैंने भाभी के पेट से निचे की और ढलाव पर स्थित भाभी की दोनों करारी जाँघों के मिलन स्थान को सहलाना शुरू किया तो भाभी मचलने लगी। भाभी ने मेरा हाथ थामा पर मैं नहीं रुकी और मैंने भाभी की जाँघों को अलग कर उनकी चूत में अपनी उंगलियां डालीं।
मेरे चूत की पंखुड़ियों को छूते ही भाभी की चूत में से उनके स्त्री रस की धार रिसने लगी। भाभी ने कभी किसी औरत के हाथ उनकी चूत को छुएंगे यह अपेक्षा नहीं की होगी। भाभी ने यह तो कभी नहीं सोचा होगा की उनकी ननद यह काम करेगी।
मैंने भाभी के रस में अपनी उंगलियां डुबोईं और फिर भाभी को दिखाते हुए उन्हें मुंह में डालकर चाट लिया। भाभी देख कर हैरान रह गयी पर मुस्कुरायी। उन्हें मेरी यह प्यार जताने की रीती पसंद आयी। उधर सेठी साहब तो मेरी चूत को ऐसे चाटने लगे थे जैसे उसमें से कोई मीठा सा सिरप बह रहा हो।
सेठी साहब के जीभ के मेरी चूत की पंखुड़ियों को खरोंचने से मुझे मेरी चूत में अजोबोग़रीब झनझनाहट हो रही थी। मेरे पुरे बदन में रोमांच फ़ैल रहा था। सेठी साहब मेरे कूल्हे मसल रहे थे और मेरे कूल्हे के गाल को चींटी भर रहे थे और बिच बिच में चपेट भी लगाते रहते थे। भाभी सेठी साहब जो मेरी चूत चाट रहे थे उनके कान चाट रही थी। भाभी के स्तन सेठी साहब की बाजुओं से घिस रहे थे।
कुछ देर तक सेठी साहब का लण्ड चूसने के बाद मैं सेठी साहब से निचे उतरी और सेठी साहब की दूसरी और लेट गयी। सेठी साहब की एक तरफ भाभी थी और दूसरी तरफ मैं। मेरे निचे उतरते ही भाभी सेठी साहब की और घूम गयी। सेठी साहब ने भाभी को अपनी बाँहों में ले लिया। सेठी साहब का तगड़ा लण्ड भाभी की चूत को छू रहा था।
भाभी उस महाकाय लण्ड से कुछ घबराई हुई जरूर थी पर भाभी ने मन ही मन तय कर लिया था की मौक़ा मिलेगा तो सेठी साहब के उस महाकाय लण्ड से जरूर चुदवायेगी।
भाभी भी सेठी साहब से ऐसे चिपक गयी जैसे एक बेल पेड़ को चिपक जाती है। सेठी साहब ने भाभी के सर को पकड़ कर उनके होंठों को चूमना शुरू किया। सेठी साहब और भाभी का चुम्मा इस बार काफी आक्रामक था। सेठी साहब भाभी के होंठों को और जीभ को इतनी तेजी से में चूस कर खिंच रहे थे की भाभी की चीख निकल गयी। सेठी साहब भाभी के होँठों को काटते तो कभी गालों को इतनी शिद्दत से चूसते की भाभी के गोरे गोरे गालों पर सेठी साहब के होँठों का निशान होजाना तय था।
कुछ देर भाभी और सेठी साहब की चुम्माचाटी होनेके बाद मैंने सोचा की समय आगया है की भाभी को सेठी साहब के तगड़े लण्ड से चुदवाया जाये। एक बार भाभी को सेठी साहब ने चोद दिया फिर भाभी हमारी पक्की राज़दार बन जायेगी। फिर ना हमन उनसे ना उन्हें हमसे कोई भय या आशंका रहेगी।
मैंने बाजू में लेटे हुए ही सेठी साहब का लण्ड पकड़ा और भाभी की चूत पर रगड़ने लगी। जैसे ही मैंने यह किया तो भाभी और सेठी साहब दोनों रुक कर मुझे देखने लगे।
मैंने कहा, “अब भाभी की बारी है, सेठी साहब आपने मुझे कल खूब रगड़ा था, अब भाभी को रगड़ो। भाभी ने मेरा बड़ा मजाक उड़ाया है।”
भाभी ने मेरी और देखा और कुछ आतंक और कुछ शरारत से बोली, “ननदसा, बदला लेना चाहती हो क्या?”
मैंने भाभी को ढाढस देते हुए भाभी के कूल्हे को सहलाते हुए कहा, “नहीं भाभी, मैं सेठी साहब के लण्ड का मजा ले चुकी हूँ। अब आप को भी लेना है। अब तो हम दोनों ही उसके भागिदार होंगे। अब दर्द की मत सोचो। एन्जॉय करो।”
मैंने सेठी साहब का लण्ड भाभी की चूत की पंखुड़ियों को थोड़ा खोल कर भाभी की चूत की पंखुड़ियों के बिच सेट कर दिया और फिर सेठी साहब को इशारा किया की वह अब उसे अंदर घुसाएँ।
मैं भाभी की चूत का छिद्र देख चुकी थी। भाभी की चूत का छिद्र काफी छोटा था। शायद मेरे भाई का लण्ड बड़ा नहीं होगा तो भाभी की चूत को खुलने की जरुरत ही नहीं पड़ी। पर अब बात और थी। सेठी साहब के लण्ड को लण्ड कहने के बजाय उसे कोई रबर का बड़ा होज़ पाइप कहना ही ठीक होगा। वह तो आसानी से घुसने वाला नहीं था भाभी की संकड़ी चूत में। भाभी के चेहरे पर तो आतंक के निशान थे ही पर मैं भी कुछ परेशान हो रही थी।